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रणविक्कमकहा जंपइ विप्पो बीयं पि तं पि किं नो वरोरु ! रोएसि ।। जं तुह घयघडभंगो, जाओ दव्वक्खओ बहूओ ॥ २८६२ ।। तीयुत्तं किं एक्कं रुएमि नररयण ! रोइयव्वाओ । किं न सुया ? लोगुत्ती बहुदुक्खमदुक्खमज्झे त्ति ॥ २८६३ ॥ सुयं तव्वयणो सो भणइ सुब्भु ! जं जंपियं तए एयं । बहुदुक्खमदुक्खं इय मह साहसु कोउयं जेण ॥ २८६४ ॥ तो सा तं पइ जंपइ संपइ उवविसिय कत्थई सुणसु । तं सोउं सो पत्तो तीए समं नयरउज्जाणे ॥ २८६५ ॥ सप्पासणसंगयमवि पउरासणसोहियं पुरवरं व । जं अनवमालियं पि हु वियसियनवमालियं सहइ ॥ २८६६ ॥ उल्लसिय-सुतार-सुवन्न-रयणसालत्तयासियप्पमयं । पत्तालिविहयविसरं जं सोहइ समवसरणं व ॥ २८६७ ॥ तत्थ निरंतरवणसंडं-मंडलीसीयालकयलिसंडे ।। अविरलदलदक्खामंडवम्मि गंतुं समुवविट्ठो ॥ २८६८ ॥ मित्तेसु निविद्रुसु उवविट्ठा विट्ठरे विइन्ने सा । न चयंति वियट्ठाउ जइ वा समुचियसमायरणं ॥ २८६९ ।। पत्तदियाएसा सा साहिउमुवचक्कमे नियं चरियं । अंगीकयं पि काउं जुत्तं गुरूआण आणाए ॥ २८७० ॥ नामेण लच्छितिलयं पुरमत्थि महत्थवित्थरं जत्थ ।। मझे तरुणा पमयागया सयासाहिणो उवहिं ॥ २८७१ ।। अंतो बहिं च रेहइ, जं विरहारूढपोढकइरायं । तह बहिमंतो य सया, रत्तासोयप्पियालसियं ॥ २८७२ ॥ मज्झमि गिहा बहिया जलासया अमियसंखसउणसिया । गुरुपायवसे पत्ता मज्झे मुणिणो मही उवहिं ॥ २८७३ ॥ तप्पुरपहुत्तमुव्वहइ तिव्वदावग्गिदुस्सहपयावो । लच्छीविलासनामा रामा मणहरतणू राया ॥ २८७४ ॥
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