________________
२२६
सिरिअणंतजिणचरियं जो अंगीकयकित्तीहरो व्व पमायासओ समीरो व्व । निस्सेसमंडलकरो विभाइ पुन्निममयंको व्व ॥ २८७५ ॥ अवरोहकामिणीवग्गअग्गणी अत्थि राइणो दइया । नामेण विलाससिरी, सिरि व्व सिरिवच्छहिययहरा ॥ २८७६ ॥ उत्तमकन्ना वि सुवन्नजायउल्लसियगुरुतराणंदा । लोयप्पिया सई वि हु सुहया वि हु अहयसोहा जा ॥ २८७७ ॥ पोढाणुरायरत्ताए तीए सह विविहविसयसत्तस्स । नयनिट्ठस्स निवइणो सुहेण कालो वइक्कमइ || २८७८ ॥ तत्थेव वसइ चउदसवरविज्जाठाणजाणओ विप्पो । नामेण वेयसारो हारो व्व पवित्तमुत्तमगुणो ॥ २८७९ ॥ गुणिवग्गअग्गणी वि हु उदारचित्तो वि तुच्छवित्तो सो । ईसालुय व्व न सिरी, ससरस्सइयं तमणुसरइ ॥ २८८० ॥ नियरूवे होमियकामिणीयणा कामिकामसंजणणी ।। नामेण कामलच्छी, कमलच्छी अत्थि कंता से ॥ २८८१ ॥ नयणनिमेसुम्मेसे न कुणंति सुरा वि विरहनिहुरंगा । तब्भो उब्भवचिंतासंताणपणट्ठचित्त व्व ॥ २८८२ ॥ अवलोयणं पि तीए सुचरियसुकयप्फलं व कलइ जणो । सविलासालावं पुण तिहुयणरज्जाहिसेयं व ॥ २८८३ ॥ तेसिं विसयासत्ताण जाइ कालो महासुहपराण । नेहजुयाणं अमयं निन्नेहाणं विसं विसया ॥ २८८४ ॥ पढमे वि जोव्वणम्मि जाओ पुत्तो गुणुत्तमो तेसिं । नाम से वेयवियक्खणो त्ति विहियूसवं विहियं ॥ २८८५ ॥ सलिलनिमित्तं कइया वि कामलच्छी गया पुरद्दारे । नियगेहकज्जकरणे का वा लज्जाकुलवहूण ? || २८८६ ॥ पत्ता उत्तमवणसंडमंडलीकलियपालिसरसलिले । जा तस्स सिसिरसत्थस्सुसाउणो पूरए कुंभं ॥ २८८७ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org