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सिरिअणंतजिणचरियं अवरं च-जाई अच्चब्भुयाई तुह कोउयाई दीसंति । पंचंदियजीववहेण ताई सव्वाइं वि हवंति ॥ २८२३ ॥ ता एवंविहगुरुयरपावपब्भारभारिओ नरए । तिव्वयरवेयणे जोइराय ! सा निवडसु मुहे व ॥ २८२४ ॥ किरंति सुहेणेव य पावाई पमोयवियसियमुहेहिं । अइविरस्समारसंतेहिं ताई पुण अणुहविजंति ॥ २८२५ ॥ जायइ जइ थिरमाऊ, जइ वा परिगलइ जोव्वणंते व । तावज्जियमज्जायं किज्जंतु सया सुकज्जाइं ॥ २८२६ ॥ ता जोईसर ! तं किं पि कुणसु न पुणब्भवो भवइ जेण । संपज्जइ परमाणंदनिब्भरं सिद्धिसोक्खं व ॥ २८२७ ॥ इय पत्तसूरिवयणारविंदसद्देसणागओ अहयं । अवगय अविवेयविसो संवेगपरो पयंपेमि ॥ २८२८ ॥ तुह निक्कित्तिमसिक्खावयणुम्मीलियमहाविवेयस्स । मज्झ मणे संजायं, परमप्पा तं चिय न अन्नो ॥ २८२९ ॥ ता सामिसाल ! तुह पायपउमवणवासलालसा दूरं । नन्नत्तो जाइमणप्पवित्तिं कलहंसिया मज्झ ॥ २८३० ॥ ताहं पहु जाजीवं तुम्ह कमसेवणेक्ककयचित्तो । गिहिस्सामि वयभरं नवरं पुच्छं कमवि काहं ॥ २८३१ ॥ कुणसु त्ति गुरुत्ते भणइ जोइओ तुम्ह वयभरो पढमो । तह इस्सिरियं सूयइ लक्खणजायं सुहं देहो ॥ २८३२ ॥ सोहग्गसमग्गं गुणगणो गुरूरूवरम्मया असमा । वेरग्गकारणं किं जं तुब्भेहिं वयं गहियं ॥ २८३३ ॥ निक्कारणा पवित्ती न हवइ जं का वि उत्तमनराणं । ता साहह मह तो भणइ मुणिवई सोम ! निसुणेसु ॥ २८३४ ॥ तरणिरहरयणगमणक्खलणक्खमसालवलयकलियं तं । सरसलिलं व विसालयमत्थि पुरं सिरिविसालं ति || २८३५ ॥
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