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रणविक्कमकहा इय मज्झ हियं पुणरवि गुरुणो पभणंति सुणसु जोइंद ! । एयं दुलहं लद्धं मा विहलसु माणुसं जम्मं ॥ २८१० ॥ भणियं मए वि कह जम्मविहलया मज्झ ? तयणु भणइ गुरु । जीवदयापरिहीणं, विहलं चिय मुणसु मणुयत्तं ।। २८११ ॥ मंसं भक्खंति महुँ पियंति सेवंति परकलत्ताई । इय पावप्पहयाणं, कत्तो सहलं मणुस्सत्तं ॥ २८१२ ॥ जंपेमि अहं सग्गापवग्गसंसाहओम्ह एस विही । भणइ पहू मह साहसु जोईय ता नरयगमणविहिं ॥ २८१३ ॥ पुणरवि भणामि किं भो ! मुणिंद ! तुह अम्ह मयवियारेण । गुरुणा भणियं सुजुत्तं मा एवं भणसु जोइंद ! ॥ २८१४ ॥ इह चोल्लगाइदिळंतदसगदुल्लहे नरत्तणे पत्ते । आरियखेत्तुत्तमगोत्तए सुहसामग्गिसहियम्मि ॥ २८१५ ॥ कज्जमणवज्जकज्जं उज्जमसज्जेहिं सज्जणेहिं तयं । जमुभयभवहियजणयं सियकित्तिकरं च सुहयं च ॥ २८१६ ॥ ता भो जोइंद ! महाणुभावजुत्तो न मंसउवभोगो । जेण महापावकर, जीववहसमुब्भवं मंसं ॥ २८१७ ॥ जइ पाणपरित्ताणं जायइ केणावि अवरभक्खेण । खणतित्तिकए ता को जीववहं कुणइ, भणियं च ॥ २८१८ ॥ एक्कस्स कए नियजीवियस्स बहुयाओ जीवकोडीओ ।। जे मारयंति पावा ताणं किं ? सासयं जीयं ॥ २८१९ ॥ तहा - एक्कस्स खणं तित्ती अन्नस्स य तिहुयणं पि अत्थमइ । एवं कह मारिज्जिइ खणसोक्खकएण पाणिगणो || २८२० ॥ मज्जं पि महापावस्स कारणं सव्वहा विवेयहरं । अकलियकज्जाकज्जं अणज्जजणसेवियमजुत्तं ॥ २८२१ ॥ परनारीपरिभोगो, भवबीयंकुरो य अकित्तिकरो । वेराण बंधहेऊ पावप्पासायगुरुक्खेउ ॥ २८२२ ॥
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