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________________ सिरिअणंतजिणचरियं ४५२ साहिंति य गुरुपुरओ तक्कहियतवाइयं अणुट्ठति । हुति तओ सुविसुद्धा सत्ता निरुवाहिफलिह व्व ॥ ५७९४ ॥ ता चंदकंत ! तुमए जं पुट्ठे सासुयाए बहुयाए । दुस्सीलया कलंको, किं दिन्नो ईय तमक्खायं ॥ ५७९५ ॥ ता सत्तन्ह वि तुम्हें सासुय - बहुयाण चरियकहणेणं । कहियं चरियं ति पयंपिउं, ठिओ केवली मोणे ॥ ५७९६ ।। सुय नियपुव्वभवाइं सत्त वि संजायजाइ - सरणेण । ताई सच्चविय भवदुगाई नमिउं भणंति गुरुं ॥ ५७९७ ॥ पहुणा जहा पयासियमम्हेहिं वि तह समग्गमविदिट्ठं । जाइस्सरणेणं ता करिमो समणोरहं सहलं ॥ ५७९८ ॥ इय भणिय पणयपहुणो पत्ता सव्वे वि निययभवणेसु । काऊण न्हाण - भोयणकरणिज्जं संजमुज्जमिणो ॥ ५७९९ ।। कल्लाणपुंजरन्नागणमुद्दिट्ठे सुहावहे लग्गे । कल्लाणकलसकुमरो अहिसित्तो निययरज्जम्मि || ५८०० ॥ तो चंदकंतमंडलवइणा तणयस्स चंदसेणस्स । सुहलग्गम्मि स पिउणा रईओ रज्जाहिसेयमहो । ५८०१ ॥ तो कयकिच्च त्ति काराविऊण जिण - मंदिराइं रयणेहिं । तो सुट्ठवंति गणहरमंतपइट्ठियमणिजणिंदे ॥ ५८०२ ॥ मुंचति चारयाओ कयावराहे हेरिरायनरनियरे । घोसाविंति अमारिं नियआणावत्ति - विसएसु || ५८०३ || नाणाइगुणमहग्घं संघं सम्माणयंति भत्तीए । जिणमंदिरेसु रम्मं रयंति अट्ठाहिया महिमं । ५८०४ ॥ विहियसिणाणा विरईयविलेवणा रयणभूसणा रहिया । पावरिय नायनिम्मोयमउयपट्टओ य वत्था य ।। ५८०५ ॥ दहियक्खय-सिद्धत्थय - दुव्वादलविलसमाणसीमंता । उन्निद्दमालईमउलमालिया रईयसेहरया ।। ५८०६ ॥ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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