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अणंतजिणवण्णणं
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हरियालियहरिचंदणगोरोयणपमुहवत्थुजायं च । तह सव्वुत्तमवत्थाहरणभवं सक्कसिंगारं ॥ १६७४ ॥ सव्वाए वि पुरीए, सुरेहिं देवंगदेवदूसेहिं । लंबंतहाररयणावलीहिं विहिया विविहसोहा ॥ १६७५ ॥ कुंकुमकप्पूरजलेहिं, सिंचिउं गयरया कया नयरी । रइओ य पुप्फपयरो, नवसुरतरुमंजरिभरेण ॥ १६७६ ॥ ठाणट्ठाणे नहट्ठिय, कंचणमयपत्तकलियजलणेण । डझंतागरुकप्पूर-परिमलो पसरइ पुरीए ॥ १६७७ ॥ अंतमुहत्तंतो वि हु, जायमिमं सव्वमवि निवो दर्छ । से पउरपरिवारजुओ अच्वंतं विम्हयं पत्तो ॥ १६७८ ॥ तो रयणमए सीहासणम्मि पुव्वाभिमुहोवविट्ठस्स । दोसु वि पासेसु ठिया पहुणो जणयाइरायाणो ॥ १६७९ ॥ करयलकयवियसियसहसपत्तविलसिरमुहे कणयकलसे । पल्हत्थंति पहुसिरे इठं से वज्जिराउज्जे ॥ १६८० ॥ (जुयल) सोहइ हरिचंदणकयविलेवणो कंचणप्पहो सामी । मंदरगिरि व्व ससहरजोण्हाभरधवलिओ दूरं ॥ १६८१ ॥ सुरवइसंपेसियदेवदूसमणिभूसणेहिं सिंगारो । रइओ तिहुयणपहुणो तो तेण हरि व्व सो सहइ ॥ १६८२ ॥ तो नरवइ-महीवइ-अमच्च-सामंत-मंडलियकलिओ । भूमिलियभालवट्ठो पणओ पहुपायसयवत्तं ॥ १६८३ ॥ तो उवविट्ठो भूमीए, भूवई पत्तिवित्तिमणुसरिडं । कयपाणिकमलकोसो एवं विन्नवइ नवनिवइं ॥ १६८४ ॥ होज्ज जणावज्जणउज्जओ त्ति जंपेमि कह तुमं देव ! । आजम्मं पि नरामर-सुरिंदसेविज्जमाणपयं ॥ १६८५ ॥ सत्थत्थेसु दुहा वि हु गुणिजणसंदेहमवयणंतस्स । कह जंपेमि गुणज्जणपरो भविज्ज ति तुह समुहं ॥ १६८६ ॥
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