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________________ १३४ पेसिज्ज चरे परमंडलेसु एवं पि असरिसं तुज्झ । तिहुयणभवंत अत्थावबोहखमनाणजुत्तस्स ॥ १६८७ ।। होज्ज नयज्जणजुत्तो त्ति जंपिडं जुज्जए न एयं पि । तुह समुहं सिविणम्मि वि अनायअनयप्पवित्तिस्स ।। १६८८ ॥ ता देव ! तुज्झ सिक्खाविसए णे पावनीयमिव वयणं । निउणं वि भावियं पि हु, न लहइ अवयासमेत्तं पि ॥ १६८९ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं तह वि हु अम्हाणेक्कं, जगगुरु ! अब्भत्थणं कुणसु सहलं । एय नयपरं करेज्जसु अप्पसमं सव्वमवि लोगं ॥। १६९० ॥ इय भुवणवदं विन्नविय रयणसीहासणे ठिओ राया । भणइ महायणसमुहं आयन्नह मह समाएसं ॥ १६९१ ॥ एक्कग्गमणा एवं आहारेज्जह मणोभिमयफलयं । आराहणे बहूणं तूसइ नेगो वि जेणुत्तं ॥ १६९२ ॥ एगो देवो एगो य सामिओ जाण ताण कल्लाणं दो पक्खे सेवंतस्स होइ चंदस्स व न रिद्धी ।। १६९३ ॥ इहपरभवहियकारी एस पहू तुम्ह सेविओ होही । दाही सिरिमिह लोए भवंतरे सग्ग- अपवग्गे ॥ १६९४ ॥ इय जंपिय कयकिच्चो त्ति नवरई परमतोसमावन्नो | सिद्धी साभिप्पेयस्स, कस्स तोसं न संजण || १६९५ ॥ सव्वाए वि पुरीए जम्मि दिणे देवनिम्मियं विविहं । पेच्छणय - नाडयाइं निवाइलोगो निरिक्खेइ ।। १६९६ ।। इय कारविडं रज्जाहिसेयममरा जएक्कपहुपणया । पुरि- सजणणियच्छरिया, पत्ता सोहम्मसुरलोए ।। १६९७ ।। अम्मा-पिऊणो कईया वि आउअंतम्मि सामिसालस्स । सुहपरिणामवसेणं, सणकुमारेगयाइं जउ ॥ १६९८ ॥ नागेसुं उसभपिया, सेसाणं सत्त हुंति ईसाणे । अट्ठ य सणकुमारे, माहिंदे अट्ठ बोहव्वा ॥ १६९९ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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