SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 504
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रयणसुंदरकहा ४७५ मा होउ पिए ! जम्मो निस्संताणाणमम्हसरिसाण । जे नियवंसच्छेयणपरमुप्पाया जए जाया ॥ ६०८७ ॥ तं सोउमाह सा पुहु ! एत्तियफालं अहं पि भावंती । मह कईया गब्भभरालसाए होहिंति दोहलया ॥ ६०८८ ॥ कईया उच्छंगगयं थणं थयं धावमाणमिक्खिस्सं ।। कईया वि पेच्छिस्सं हसिरमकारणमदंतमुहं ॥ ६०८९ ॥ सीहावलोइएणं रिखंतो मं पलोइही कईया । नियकरअंगुलिलग्गो दाविस्समहं पयाइं कया ॥ ६०९० ।। राहाडिं पूरिस्सं कयारुयं तस्स वंछिउं दाउं । पहिणस्स इमं कईया रुट्ठो कोमलकरयलेण ॥ ६०९१ ॥ तह कईया दच्छीहं तं सह डिंभेहिं कीलणासत्तं । पेक्खिस्सं वा कईया हयलीलाकयपयक्कमणं ॥ ६०९२ ॥ विम्हाविस्सइ कइया मं लक्खणकव्वतक्कपुच्छाहिं । उप्पाइस्सइ तोसं कइया वा नववहूसहिओ ॥ ६०९३ ॥ संवाहिस्सइ कईया तुहक्कमे पायवीढउवविट्ठो । संझादुगे वि नमिही कइया मह तुम्हमवि चरणो || ६०९४ ॥ एवं पुहु ! पुत्तगया नियमणठाणे मणोरहवणाली । वविया मए न तीए अंकुरमेत्तं पि सच्चवियं ॥ ६०९५ ॥ आयन्निउं पियाए मणोरहे भणइ भूवई देवि ! । जइ वि विही पडिकूलो तह वि नरेणुज्जमेयव्वं ॥ ६०९६ ॥ इय जंपिऊण सपिओ वि कुणइ मणिमूलियाई न्हाणाई । सप्पाडिहेरदेवाण भणइ उवजाईयसयाइं ॥ ६०९७ ॥ कारवइ संतिगाई, आराहइ गोत्तदेविमुवउत्तो । पियराण कुणइ पूयं गहचक्कं निच्चमच्चेइ ॥ ६०९८ ॥ किं बहुणा ! भणिएणं जं जं जाणगजणेणमुवइहें । तं तं निवेण विहियं न चेव जाया सुउप्पत्ती ॥ ६०९९ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy