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तवोवरिचंदकंत कहाणयं
एवं थोऊण जिणं, सुभत्तिपब्भारनिब्भरो दूरं । कुणइ पणिहाणमाणंद - अंसुभर-दंतुरच्छिजुओ ॥ ५१६२ ॥ पुणरुत्तपणयजिणपाय- पंकओ सुरसहंसमल्लीणो । अभिवंदियइंदाइतियसो कर - कोसल - सिरसिरो ॥ ५१६३ ॥ सुरराय - सेवयामर - विइन्नउचियासणे समुवविट्ठो । एत्थंतरम्मि अमरीयणेण पेच्छणयमारद्धं ॥ ५१६४ ॥ पडुपडहपाडपयडियसमविसमुत्तालधरणम्मि । लग्गाओ अच्छराओ, मुयंगवायणविहीए वि ॥ ५१६५ ॥ काउ वि मणोगयरायवासणावसविमुक्कफुक्काहिं । गीयट्ठाणगदाणं कुणंति अइससुरवंसेहिं ॥ ५१६६ ॥
अवराकरचालणज्झणहणंतमणिवलयतालरमणीयं । ईसिप्पकंपिरथणी वीणं वायइ विसालच्छी ॥ ५१६७ ॥ महुरस्सरेण काउं वि गायंति जिणिंदगुरुगुणग्गामं । हुफिय-कंपिय-कुरलिय - मुद्दिय - रायाणुसारेण ॥ ५१६८ ॥ अन्नाओ तालच्छंदाणुसारिचलचरणकणिरघग्घरयं । नच्चंति चलणकरणब्भमिनमुहविभंगभावेहिं ॥ ५१६९ ॥ एरिस पेच्छणए पेच्छयच्छिसुहिसुहयरे जिणिंदस्स । न्हवण- - विलेवण - भूसण-पूयाकम्मं सुरेहि कयं ॥ ५१७० ॥ तो लवण - जलारत्तिय - मंगलदीवेसु उत्तरंतेसु । रुंधइ गयणं वज्जिरचडव्विहाउज्जसरपसरो ।। ५१७१ ॥ ईय निव्वत्तियपूओ, सक्को सक्कत्थएण थोऊण । मणिमयकुट्टिमतलमिलियभालफलओ जिणं नमइ ॥ ५१७२ ॥ तो चंदकंतमाभासए सयं वच्छ ! तं कुओ पत्तो । एत्थ त्ति ? तओ सक्क्स्स तेण जहवट्ठियं कहियं ॥ ५१७३ ॥ तो नाणलोयणेणं अवलोईय तप्पियं भणइ सक्को । वत्थामलसीलवई, महासई सहयरी तुज्झ ॥ ५१७४ ॥
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