SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 440
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४११ तवोवरिचंदकंतकहाणयं इय भणिरिं सा सासुयमभिजंपइ किमिममंब ! उल्लवह । जं मह कुकम्मविलसियमेयं ता तुम्ह को दोसो ? ॥ ५२६६ ॥ एवमवरुप्परं खामिऊण ता तेहिं कुसलवत्ताओ । .. आउच्छियाओ नवनेहनिब्भरब्भिन्नपुलएहिं ।। ५२६७ ॥ तो न्हाण-भोयणाइप्पडिवत्ती गोरवेण कारविया । परिवारजुयस्स सुयस्स सेट्ठिणा दिट्ठहियएण ॥ ५२६८ ॥ वीसत्थेणं पिउणा तणओ उवविसिय पुच्छिओ एवं । एयट्ठाणाओ वच्छ ! तं गओ कत्थ मह कहसु ॥ ५२६९ ॥ तह कत्थ परिब्भमिओ, कत्थ व बहुया इमा तए पत्ता ? | अच्चब्भुयरज्जसिरी केण व एसा विइन्ना ते ? || ५२७० ॥ एयं सव्वं पि हु जाय ! कहसु जं मज्झ कोउयं गरुयं । तो तेण समक्खायं तं पिउणो विगयगव्वेण ॥ ५२७१ ॥ सोउं सुयबहुयाणं चरियं, अच्छरियकारयं सेट्ठी । जंपइ सिरं धुणंतो, हरिसवसुल्लसियरोमभरो ॥ ५२७२ ॥ माइ-पिइ-पइकुलाई, सियकित्तिसुहारसेण बहुयाए । धवलीकयाई तह जह ससहरजोन्हाए गयणयलं ॥ ५२७३ ॥ तह तिव्वतवो विहिओ, गुरुगिरिगुहगब्भविहियवासाए । जह देवो वि इमाए, किंकरकरणीधरो जाओ ॥ ५२७४ ॥ कहमन्नहा विमाणं, काउं कल्लाणजनिवपासे । नेऊण सुयं दंसिय मुक्का एसा पहिडेण ॥ ५२७५ ॥ तुह वच्छ ! नियपियाविरहियस्स मित्तो व्व पुन्नपन्भारो । चलिओ सममेव झड त्ति दंसिया जेण जिणहरिणो || ५२७६ ॥ जिणवंदणप्पहावप्पहणियभोयंतरायकम्मस्स । हरिणा रयणविमाणेण मेलिया पिययमा तुज्झ ॥ ५२७७ ॥ जो सिंगारो दिन्नो हरिणो साहम्मिओ त्ति तुह जाया । तेण तुमं सकलत्तो वि अ सुररिद्धिं पि विडंबेसि ॥ ५२७८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy