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________________ तवोवरिचंदकंतकहाणयं ४४१ इहलोयं चिय अहमा इह-परलोयं च मज्झिमा पुरिसा । परलोयमेव वंछंति सव्वहा उत्तमा जे उ ॥ ५६५६ ॥ नो बालत्तं नेवाऊतुट्टया तायं ! एस तव समओ । जं अव्वत्ता बाला थेरा पुण विगयसत्ता जं ॥ ५६५७ ॥ जरा जाव न पीडेइ वाही जाव न वड्ढई । जाविंदिया न हायंति ताव धम्मं समायरे ॥ ५६५८ ॥ जावज्जविप्पबोहो लब्भइ सुत्तेहिं ताय ! पुन्नेहिं । नावुज्जमो विहिज्जउ, कल्लाणकरम्मि सद्धम्मे || ५६५९ ॥ पुत्ता सुरलोयसिरी, अणेगसो माणियाइं रज्जाई ।। तह वि न तिप्पइ जीवो तण्ह च्चिय वद्धए दूरं ॥ ५६६० ॥ सोउं वसंतदेवुत्तममयरसविरससरिसधम्मकहं । आह पिया वच्छ ! तुमं लहुओ वि गुरुईय भणंतो || ५६६१ ॥ पुव्वं पि जाय जो मह मणठाणे वयदुमंकुरो हुँतो । सो तुमए पल्लविओ मेहेण व देसणजलेण ॥ ५६६२ ॥ ता जाय ! जिणिंदवयं वयं पि तुमए समं करिस्सामो । सव्वुत्तमकल्लाणे न जेण जोग्गा पमायति ॥ ५६६३ ॥ तो जाइ तिजयरज्जो व्व अमयसित्तो व्व सिद्धिपत्तो व्व । जाओ सो अइसुहिओ जणयवयुच्छाहसवणेण ॥ ५६६४ ॥ पणमिय जणणिं संभासिउं पियं तयणु दो वि इय भणइ । ताएण समं अहमवि जिणदिक्खं इण्हि गिहिस्सं ॥ ५६६५ ॥ जइ तुम्हाण समाही ता कुणह तयं सिवेक्कसुहजणयं । अह नो ता निहिजोग्गं, दुवालसवयभरं धरह ॥ ५६६६ ॥ तं सोउं जणणीए वइणीहिं संवेगरंगियंगीहिं । भणियं अम्हे वि जिणिंद-दिक्खगहणम्मि सज्जाओ ॥ ५६६७ ॥ तत्तो सो सव्वुत्तमहरिसवियासेण पूरिओ हत्थं । जा उवसंतदवो सहस त्ति वसंतसमओ व्व ॥ ५६६८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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