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सिरिअणंतजिणचरियं
घणकंचणमणिनिप्फाइयाहं, रुप्पयमाणिक्कविराइयाहं । भुवणपवित्तमिउकप्पियाहं, चंदणकयाहं गंधप्पियाहं ॥ १४८५ ॥ जह कलसहं सारहं, तह भिंगारहं, अट्ठसहसचउसट्ठ कय । तो ते परमायरि, खीरह सायरि, पत्त अमर सज्जिय सुकय ॥ १४८६ ॥
तहिं भरवि कलसखीरोदयस्स, पूरिवि तहन्ननीरहि पयस्स । जलहीसु जाइं कमलुप्पलाइं, गिण्हंति ताई घणपरिमलाइं ॥ १४८७ ॥ मागह-वरदाम-पहास-सलिल, तह सासयसरिजलविगयकलिल । कुलगिरिवक्खारमहीहरेसु, नइ-कुंड-वण-द्दह-मंदरेसु ॥ १४८८ ॥ कुसुमोसहि-मट्टिय चंदणाई, गिण्हति चित्तआणंदणाई । तो पत्त झत्ति मंदरसिरम्मि, मेल्लंति कलसमणिपट्टिरम्मि ॥ १४८९ ॥ (१०) परिवट्टिवि चंदणविहिय मसिण, कलसेहिं खिवंति सोहंत मुसिण । कलसमुहेसु अमरेहिं कयाई, गंधुद्धरकंचणपंकयाइं ॥ १४९० ॥ विलसिरसिरियक्कमु, न्हवणोवक्कमु, कहिउ अच्चुयइंदह सुरेहिं । जं तुब्भेहिं जंपिउ, भुवणत्तयपिउ, तं अम्हेहिं किउ आयरिहिं || १४९१ ॥
अह अट्ठइ अच्चुयनामधेउ, सुरवइ भुवणुत्तमभागधेउ । तो दस सहस्स सामाणियाण, तेत्तीस वि तायत्तिसयाण ॥ १४९२ ॥ चत्तारि लोगपालप्पहाण, सत्त य अणीयपहु गुणनिहाण । सत्त य अणीयमंदिरुमहस्स, चालीस अंगरक्खह सहस्स ॥ १४९३ ॥ (११) परिसायउ तिन्नि गुरुभत्तिकलिय, ए सव्व वि जिणन्हवणत्थ चलिय ।। जिणपासह पासि जाएवि पणय, नियदेहदित्तिपरिभवियकणय ।। १४९४ ॥ मट्टिय-सव्वोसहि-वरकसाय, कलसिहिं खिवंति उज्झियकसाय ।। देवंसुयकयमुहकोस सव्वि, ठिय जिणह पासि अवसव्वि सव्वि ॥ १४९५ ॥ घणसारि विमीसियउ, अयरि भूसियउ, धूव जिणह उक्खिवहि सुर । बहुमाणुक्कंठिय, चउदिसि संठिय, थुणहिं जोइवंतरअसुर ॥ १४९६ ॥
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