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________________ ११९ अणंतजिणजम्मवण्णणं एत्थंतरि परिपसरियपराय, कुसुमंजलि सज्जहिं भत्तिराय । केयइ-दलदंतुरबउलकलिय, उज्जिभिय जूहियलालललिय ॥ १४९७ ॥ सयक्त्तपत्तपरिमलपरीय, नवमालइचुंबिरचंचरीय । रत्तुप्पल-कुवलय-पुंडरीय-मचकुंद-कुंद-दलसस्सिरीय ॥ १४९८ ॥ (१२) पफुल्लियमल्लियमहमहंत, नवपारियायमंजरि महंत ।। मंदारपरायविरायमाण, सतूलिदलमीलिय अप्पमाण || १४९९ ॥ दरदलियकलियपाडलपहाण, नवचंपयचयरयभरनिहाण । पक्खित्तससिण घणसारघुसिण आसित्तसुरहिसिरिखंडरसिण || १५०० ॥ अच्चुयसुरसामिउ, मयगलगामिउ, कुसुमंजलि मेल्लइ विमलि । अंगुलिदलकलियंइ, नहसिरललियइ, सिरितित्थेसरकमकमलि ॥ १५०१ ॥ उक्खिविय अट्ठ चउसट्ठि अहिय, कलसहं सहस्स भिंगारसहिय । कित्तिमसाहावियभूरिभेय, उच्चल्लिय अन्निवि विगयभेय ॥ १५०२ ॥ ता तेहिं सिंचिउ भुवणपणउ, जिणु सयलसत्तसिवसोक्खजणंउ । जिणु कणयवन्नु खीरेण सहइ, नं हेमकमलु डिंडीरु वहइ ॥ १५०३ ॥ (१३) वित्थरइ न्हाणपउ मेरुमग्गि, नं जिण जसो हु तिहुयणि समग्गि । नियरिद्धिसरिसु मज्जणु करंति, जिणभत्तिए नियदुरियई हरंति ॥ १५०४ ॥ बहुसंख-अमर-अवरे वि ण्हवंति, जिणु भत्तिभरोग्णय संथवंति । इय पहु अहिसेइ पयट्टमाणि, जायइ सुर पहरिसि अप्पमाणि ॥ १५०५ ॥ तो सोहिय रंगह, भूसण चंगहं, दुरूज्झिय मत्थयवच्छरहं । तित्थयरह अग्गइ, हरइ जु दुग्गइ नटु पयट्टउं अच्छरहं ॥ १५०६ ॥ वज्जंति मंजुगुजंतपडह, नच्चहिं सुरकामिणि रूवलडह । वंसा-रवुम्मिसिय रणहिं वीण, गायंति अमर जिणगुणपवीण ॥ १५०७ ॥ नाडयलउडारसरासएहिं, केवि भत्ति कुणहि पेच्छणसएहिं । केवि वायहिं दुंदुहिढक्कपमुह, आउज्ज पमयवीसंतसमुह ॥ १५०८ ॥ (१४) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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