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________________ १२० सिरिअणंतजिणचरियं तो केवि इंद चालंति चमर, केवि सूलवज्जकर हरहिं डमर । उक्खिवहिं अगरु केवि सघणसारु, केवि धरहिं जिणह सियछतु सारु ।। १५०९ ।। केवि भत्तिजुत्त जय जय करंति, केवि सामिसालगुणमणि धरंति । मणि-कणय-वासकुसुमक्करेण, वरिसंति केवि परमायरेण ॥ १५१० ॥ पेच्छवि गयगामिड, सुरपुरसामिउ, जिणमज्जणजणियायर । अवरे वि अमयासण, विलसिरवासण, नच्चहिं गुणमणिसायर ॥ १५११ । तहाहि - गजंति केवि जि स्वमत्तहत्थि हिंसंति अवर जि स्वहरि सुहत्थि । तड्डुति केवि जि स्व पुट्ठधवल, उल्ललिंहिं केवि जि स्व पवय चवल ॥ १५१२ ।।। धडहडहिं केवि जिम सजलजलय, भमि फिरहि केवि विलुलंतअलय । घणघणहिं केवि जिम रह सचक्क, कूयंति केवि जि सहसचक्क || १५१३ ।। केवि पोक्कहक्क मेल्लहि महंत, केवि दीसहिं हासिं कहकहंत । केवि पाणिचवेडइ महि हणंति, केवि सीहनाय भेरव कुणंति ॥ १५१४ ॥ (१५ केवि उप्पयंति केवि निप्पयंति, केवि पयपहारिगिरि कंपयंति । जिणमज्जणदंसणमयमत्त, इय जाय समग्ग वि सुर पमत्त ॥ १५१५ ॥ इय विरइयमज्जणु, रंजियसज्जणु, अच्चुयइंदु पूएवि पहु । पणमिवि जयसामिड, सिवपुरगामिउ, थुणवि कयत्थउ ठिउ सपहु ॥ १५१६ ॥ तो पाणयइंदाइ सुरिदिहिं, तीसहिं ण्हविउ सतिय सुरविंदिहिं । अह ईसाणइंद निव्वत्तिय, पंचरूवविलसिरतणुकंतिय ॥ १५१७ ॥ एगि उच्छंगइ जिणु भत्तउ, बीइ पहुहु धरइ छत्तत्तउ । दुहुं रूविहिं सियचामर चालइ, अवरि समूलिं दुट्ठ निहालइ ।। १५१८ ॥ (१६) एत्थंतरि सोहम्मु समुट्ठिउ, जगगुरुण्हवणकज्जि उक्कंठिउ । तिण चत्तारि वसह कय मणहर, चउदिसि धवलिमगुण जिय ससहर ॥ १५१९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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