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अणंतजिणजम्मवण्णणं
. १२१ तयणु ताहं सिंगग्गविणिग्गय, खीरह अट्ठ धार नहि संगय । एक्कक्कालु निवडहिं जयसारह, सामिहि सिरि संसारुत्तारह ॥ १५२० ॥ तो हरि परिवारि संजुत्तउ, जिणु अहिसिंचइ ठिउ उवउत्तउ । जिम अच्चुयइंदि अहिसित्तउ, तिम जलि जिणु सक्केण वि सित्तउ ॥ १५२१ ॥ अइगुरु विच्छित्तिए, निम्मलभत्तिए, विरइवि तिहुयणपहु ण्हवणु । पुन्नेक्कनिबंधणु, सुहसिरिवद्धणु, दुरियरेणुनासणपवणु ॥ १५२२ ।।
तो गंधकसाईए सामिसालु, लूहिउ सव्वंगिउ गुणविसालु । आलिंपिउ हरिचंदणरसेण, भूसणेहिं विभूसिउ पहरिसेण ॥ १५२३ ॥ पूर्वउ पणवन्नेहिं सुमणसेहिं, परिहाविउ वत्थहिं सुमणसेहिं । तो सक्के अप्फुडियक्खएहिं, अक्खंडिहिं सालिहिं चोक्खएहिं ॥ १५२४ ।। (१७) दप्पण-भद्दासण-वद्धमाण-मच्छय-सिरिवच्छ गुरुप्पमाण सुहसत्थिय-नंदावत्त सहिय, कलसिं जुय मंगल अट्ठ लिहिय ॥ १५२५ ॥ पेच्छवि सामि तिहुयणसलोणु, उत्तारिवि सक्कु सनीरु लोणु । असमाणु भत्तिभरु चित्ति धरिवि, मंगलपईवु पूयत्थुकरिवि ॥ १५२६ ॥ नियपरियणि सहियउ, सुरयणि, सहियउ, न्हविय जिणेसरनररयणु । पणमिवि पहुचरणहं, भवभयहरहं, थुणइ भत्तिवियसियनयणु ॥ १५२७ ॥
जय सिरिसीहसेणनिवनंदण, जय सिवमग्गलग्गजणसंहण ! जय पहु सुजसादेवितणुब्भव, जय तिहुयणपुहु ,जिण अपुणब्भव ! || १५२८ ॥ जय संसारसिंधुसंतारण, जय पयपणयमोक्खसुहकारण । जय नाणत्तयनायजयत्तय, जय कुवलयदलदीहरनेत्तय ॥ १५२९ ॥ (१८) जय निरुवमलायन्नसमन्निय, जय उत्तम रूविं जयवन्निय । जय अकलंकपुन्नचंदाणण, जय पहु पावहत्थिपंचाणण ॥ १५३० ॥ जय नियदंसणतिहुयणरंजण, जय दुग्गइसमुत्थभयभंजण । जय नयपुन्नपयइपरिवद्धण, जय सासयसुक्खेक्कनिबंधण ॥ १५३१ ॥
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