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________________ ५७१ सिंगारमउडकहा नियपिययमा समेओ कइवयनिव-मंति-मंडलियकलिओ । दिक्खं मग्गइ केवलिपासे संसारनिम्महणिं ॥ ७३३० ॥ केवलबलावलोईयलग्गे परिवारपरिगओ वि निवो । भत्तिब्भरनिब्भरंगो विहिणा पव्वाविओ गुरुणा ॥ ७३३१ ॥ विहिओ गहणासेवणसिक्खासु वियक्खणो मुणिंदेण । अज्जाओ अज्जियाणं समप्पियाओ सुसीलाणं ॥ ७३३२ ॥ जणयवयग्गहणुव्विग्गमाणसो खयरनरवई नमिउं ।। केवलिचरणे अम्मा-पिउणो वि हु भवणमणुपत्तो ॥ ७३३३ ॥ नवरायरिसी उवहाणकरणपुव्वं अहिज्जिउं समयं । गीयत्थो संजाओ सुस्सूसं कुणइ गच्छस्स ॥ ७३३४ ॥ तिव्वयरतवच्चरणायरणप्पक्खीण घाइकम्मगणो । रायरिसी सपिओ वि हु सिवं गओ केवली होउं ॥ ७३३५ ॥ सिंगारमउडखेयरनरेसरो नयपरो धरणिवीढं । वेयड्ढोभयसेढी रज्जं पि हु पालइ सुहेण ॥ ७३३६ ॥ चमढइ चोरे चरडे य ताडए दमइ दुद्दमे दुढे । नीइपरे परिपालइ धम्मपवित्ति सया कुणइ ॥ ७३३७ ॥ जे पिउणो वि न सिद्धा रायाणो ते वि कारिया आणं । तेण घयाहुहुहुयहव्ववाहदुसहप्पयावेण ॥ ७३३८ ॥ लीलाए वि चलिरे जम्मि सव्वओ धवलछत्तपंतीहिं । समलंकिज्जइ गयणं दिणे वि चंदावलीहिं च ॥ ७३३९ ॥ निच्चं पि तस्स भूगोयरा वि खयरेसरा वि नरवइणा । सेसं व देवयाणं सिरेण आणं पडिच्छंति ॥ ७३४० । एवमणवज्जरज्जत्तिगस्सिरिविलसिरस्स नरवइणो । वच्चंति वासरा वासवस्सिरी सरिसरिद्धिस्स ॥ ७३४१ ॥ कईया वि रयणतिलयस्सिविणयसंसूईओ सुओ तस्स । पट्टमहादेवीए जाओ सिंगारदेवीए ॥ ७३४२ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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