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________________ ६६ सिरिअणंतजिणचरियं कइया वि चंदमाला सुहसुविणयसूईयं सुयं देवी । पसवइ सव्वोत्तमरायलक्खणं कियमहापुन्नं ॥ ८१५ ॥ तो असरिसवद्धावणयकरणपुव्वं पइट्ठियं नाम । पुत्तस्स चंदकित्ति त्ति राइणा रंजियमणेण ॥ ८१६ ॥ परिवद्धिओ पवत्तो बालो बालढुमो व्व निरवाओ । पढणत्थमुवज्झायस्स अप्पिओ वच्छरे छठे ॥ ८१७ ॥ अहिगयकलाकलावो नवजोवणजणियजुवइसंतावो । परिणाविओ निवेणं नवजोवणरायकन्नाओ ॥ ८१८ ॥ ताहं सह विसयसोक्खं माणइ अब्भसइ अहिगयकलाओ । सेवइ य सया वि हु उभयकालमवि जणयमत्थाणे ॥ ८१९ ॥ एत्थंतरे घणगज्जियराओ उम्मत्तओ गयघडाओ व्व । पसरंति मेहमालाओ गयणगब्भम्मि विज्जु व्व ॥ ८२० ॥ उभिदिय घणडंबरमंबरओ पडइ ससिकरतरो व्व । खीरोयपीयपाऊसजलभरासारपसरो व्व ॥ ८२१ ॥ आसवइ सग्गउसग्गिवग्गसंगहि अमयवुट्ठि व्व । परिविलसइ जयगब्भे फलिहसलायाकलावो व्व ॥ ८२२ ॥ दिसि दिसि निसिउपुच्छलियविक्कप्पसरेण पायडिज्जंतो । अहिणवघणघणनिवडिरजलधारासारसंघाओ ॥ ८२३ ॥ कुलयं ॥ पसरियसिंदूरारुणविज्जुप्फुरियप्पहारुणं गयणं । आभाई पइक्खणजायमाणसंज्झाणुरायं व ॥ ८२४ ॥ फुल्लियपंडुरदुल्लीवेल्लिप्पच्छाइयावईओ जहिं ।। मोत्तियमिस्सियमरगयपायारा इव विरायंति ॥ ८२५ ॥ कमलविसाहारम्मि हरिए मेहेण पवसिया हंसा । आहारविरहियाणं कत्तो वासो सदेसम्मि ? ॥ ८२६ ॥ सह सरियासलिलेहिं पउत्थवईयाण वित्थओ विरहो । जम्मिं जाईहिं समं अविउत्तपियाओ वियसंति ॥ ८२७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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