________________
गिहिधम्मे चंदसेणकहा
जइ वयविग्घकरो भवसि वच्छ ! ता तुज्झ मज्झ एय आणा । तं सोउं पिउआणाभंगभया सो ठिओ मोणे ॥ ८०२ ॥ रायाणाए खयरा अहिसेओवक्कमं पओयणंति । कुव्वंति पडिहाराएसा पउरा नयरसोहं ॥। ८०३ || वाहरिओ मणिमउडो खयरवरं तेण सह नरिंदेण । कुमरस्स सुमुहत्ते विहिओ रज्जाहिसेयमहो ॥ ८०४ ॥ तो आरूढो रणिज्झणिरकिंकिणीजालरयणसिबियाए । गुरुरिद्धीए राया खयरनट्टाइं पेच्छंतो ॥ ८०५ ॥ पत्तो उज्जाणे नमिय गुरुकमे जायए जिणिंदवयं । तो सो सपिओ कइवयरायजुओ दिक्खिओ गुरुणा || ८०६ || संगहिअदुविहसिक्खो गुरुणा सह विहरिडं तवे सत्तो । संजायविमलकेवलनाणो सिद्धिं समणुपत्तो ॥ ८०७ ॥ सिरिचंद सेणरन्ना सम्माणेऊण खेयरनरिंदा | वेयड्ढगमणा दिन्नाणुन्ना ता तत्थ संपत्ता ॥ ८०८ ॥ राया वि नायमग्गेण पालए जणयदिन्नरज्जसिरिं । ताडइ चोरे दूरं उच्चाइ चरडचक्काई ॥ ८०९ ॥ सम्माणइ सयणगणं मन्नइ मित्ते य महइ महणिज्जे । आयरइ सज्जणे सइ वज्जइ दुज्जणसमागमणं ।। ८१० ॥ वंदइ गुरूण चरणे तिसंज्झमच्चइ जिणे भुवणसरणे । निच्चं पि परावत्तइ संतमणो पंचपरमेट्ठि ॥ ८११ कइया वि गयणमग्गेण गयणवल्लहपुरम्मि गंतूण । उत्तरसेणीरज्जम्मि निरवज्जं पालइ पहिट्ठो ॥ ८१२ ॥ कइया वि ससुरयाहियमाणसम्माणफ्त्तपरिओसो । चिट्ठइ दाहिणसेणीए कइ वि दिवसाई सोक्खेण ॥ ८१३ ॥ इय रज्जसिरिसमुब्भव अच्चन्भुयसंभवंतसोक्खस्स । वच्चति वासरा वासराहिवसमप्पयावस्स ॥ ८१४ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
{