________________
१८२
बलभद्दो वि अभद्दो जो धरइ करे हलं न संदेहो । अहवा कुओ विवेओ, संजाइ रोहिणीतणए । २३०५ ॥ करफंसं पि न काहं अत्थेक्कस्स व हलस्स नियमेण । कम्मेण जेण जणिओ, तस्सेव य वित्ति चिंतामो || २३०६ ॥ तं सोउमाह जणओ, जइ न करसि पाव ! महग्घरे कम्मं । ता निग्गंतु रे दुट्ठ ! जत्थ पडिहाइ जाहि तहिं ॥ २३०७ ॥ तं सोउं अहिमाणी तिणीकयासेसजणयजणो झत्ति ।
एसो जामि त्ति पयंपिऊण चलिओ गुरुरएण ।। २३०८ ॥ वारंतस्स वि पिउणा, लग्गा लहुभाउणो वि तम्मग्गे । जा विप्फुरइ न माणो, पामिज्जइ ताव गुरु आणा || २३०९ ॥ तायं तणं व सायरमहिं व देसं विसं व उज्झंति । तिहुयणमहग्घमाणालंकारालंकियप्पाणा ॥ २३१० ॥
सिरिअणंतजिणचरियं
जणणि - जणएसु नेहो, हुंतो वि तिरोहिओऽहिमाणेण । तरणिरयणीयराण व, किरणुक्केरो विडप्पेणा ।। २३११ ।। हियए हिओवएसा, न रमंति पसरिएऽ हिमाणम्मि । किं परियडंति पसुणो चलिखेत्तम्मि हरिणिंदे ॥ २३१२ ॥ गुरुआ हि माणबहुपाणपरवसीहूयहिययवावारा | अन्नाय - तिस-च्छुह-पहपरिस्समं जंति चउरो वि ॥ २३१३ ॥ भोयणट्ठाणे न सुयंति नेव भुंजेति सयणठाणंमि । एवं अक्खंडपयाणएहिं पत्ता अवंतीए ।। २३१४ ॥ कलहोयमया कविसीसयावली सच्छफलिहसालसिरे । आभाइ जीए सरयब्भमालिया इव नहुच्छंगे || २३१५ ॥ अडवि व्व पयासियपुंडरीयरयविगयपत्तरहवाहा । सीहासणासिया वि य, जा पमयाहिय बहुविलासा ।। २३१६ ॥ तीए दरियारिवारणिवारवियारणविढत्तजसपसरो । नामेण अवंतिवई, रईसरो इव समत्थि निवो || २३१७ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org