________________
रणविक्कमकहा
एत्थ धणुद्धरफारक्क- चक्कलल्लक्ककुंतकरसुहडा । सव्वत्तो संतासं सत्तूण मणे जणिस्संति ॥ २२९२ ॥ इह पुण कवलीकयनिंब - कुहरकसरक्कए कुणंताई । संदाणियक्कमाइं, अरिहंति कमेण य कुलाई ॥ २२९३ ॥ इह कवलियनवदुव्वादल - पूलय - पडल - पत्ततित्तिमुहा । उवविसिय वसहविसरा रोमंथं वत्तइस्संति ।। २२९४ ॥ इह सव्वत्तो वज्जंत- भूरि-तंबक्क-बुक्क ढक्काहिं । बहिरिज्जिही जयं पि हु, पउस - मज्झण्ह - गोसेसु ॥ २२९५ ।। पच्छालंबद्धयछत्तसिक्किरीभरतिरोहियनहंता ।
कडयस्स चउप्पासं सामंता संचरिस्संति ।। २२९६ ॥ ता सव्वा वि सव्वे वि चलह जह थोवदिवसमज्झमि । ठावेमि समग्गे विहु अहं महामंडलीयते ॥ २२९७ ॥ इय जंपिरं तमायन्निउं पिया जायअसरिस अणक्खो । साहिखेवं फरुसक्खरेहिं परिजंपिउं लग्गो ।। २२९८ ॥ रे रे भूयाविट्ठो व्व पीतमज्जो व्व सन्निवाइ व्व । जमसंवद्धाइं तुमं जंपसि इय आलजालाई ॥ २२९९ ॥ तुह गोत्ते वि हु जाया, सव्वे वि नरेसरा महिड्ढीया । तेण तुमं पि हुं होहिसि, महीवई इह न संदेहो || २३०० || नूणं न देइ देव्वो रुट्ठो वि हु कस्सइ करचवेडं । किंतु कुबुद्धीओ देइ, दुसहदुक्खावसाणाओ ।। २३०१ ॥ फिट्टो पाविट्ठ ! सयं तहावराए इमे वि फेडेसि । अहवा सई विणट्ठा, दुट्ठा नासिंति अन्ने वि ॥ २३०२ ॥ रणविक्कमेण भणियं, किं ताय ! तुमं मुहा पकुप्पेसि । तुज्झाभिमुहं न मए जंपियं जंपियं किं पि हु निरुद्धं ॥ २३०३ ॥ विहलं जंतं न तरामि पेच्छिउं चंदणं व नियजम्मं होउ व मा वा लच्छी तयज्जणे उज्जमिस्सामि ॥ २३०४ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
१८१
www.jainelibrary.org