________________
१८०
सिरिअणंतजिणचरियं सव्वंगलक्खणं जो, मयणसिरिकन्नयं विवाहेही । रन्नो अवंतिवइणो सो नरनाहो धुवं होही ॥ २२७९ ॥ तं सोउमाह सिस्सो को सो तो साहए निमित्तन्नू । सामण्णनरो रणविकमो त्ति तो हं ठिओ हिट्ठो ॥ २२८० ॥ चिंतेमि मज्झ नाम कहियं एएणमहव कत्तो मे । एवंविहपुत्ताई समनामाणो जओ बहुया ॥ २२८१ ॥ अहवेत्थ भवे कस्सइ कयाइ केणावि कुसलकम्मेण । संघडइ अघडमाणं पि जेणं कम्मे वि विन्नत्तं ॥ २२८२ ॥ इय परिभाविय तत्तो निग्गंतुं नियघरे पसुत्तो हं । कहियं च तुम्हमेयं, गच्छिस्समहं अवंतीए ॥ २२८३ ॥ जइ अणुकूलो दिव्वो, ता थोवदिणेहिं परिणिऊण तयं । रायसुयं इहयं तं आणिऊण हं करिस्समावासं ॥ २२८४ ॥ इह कंचणकलसावलिसमलंकियपंडुगुडुरघरेसु ।
आवासिस्सामि अहं, समंतिसामंतमंडलिओ ॥ २२८५ ॥ इह पुण चंकमिररणज्झणंतमंजीरमुहलियदियंता । अत्थाणं वारविलासिणीओ समलंकरिस्संति ॥ २२८६ ॥ इह चउखंडय-गुड्डर-गुणलयणि-विमाणियाइट्ठाणेसु । विहियट्ठिई पहिट्ठो, चिट्ठिस्सइ सव्वकडयजणो || २२८७ ॥ पच्छानिलउव्वोल्लिरपल्लचक्कं केलिदुमसमूहम्मि । कीलिस्संति समं सहयरीहिं सिंगारिणो तरुणा ।। २२८८ ॥ इह सम्मुहवडवणसंडमंडलीसिसिरतलपएसम्मि । पेच्छिस्सह करि-करिणी-कलह-कुलं अग्गलिज्जंतं ॥ २२८९ ॥ एत्थानिलपरिलोलियधयालिज्झणहणिरकणयकिंकिणिया । पसरिस्संति समंता रहनिवहा नायगसणाहा ॥ २२९० ॥ जव-जवस-गासलालसा मुहाओ, इह तुरयमालियाओ वि । होहिंति गीवा-गय-चल-चामर-विलसिरंगीओ ॥ २२९१ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org