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रणविक्कमकहा
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नवजुव्वणदढदेहा गेहाओ, विणिग्गया कयाइ समं । चत्तारि वि गहिय हला, बल व्व पत्ता य खेत्तम्मि || २२६६ ॥ खेडिय हलाई सोहिय तणाई वविऊण विविहधन्नाइं । सम-वस-मल-कलिय-गलंत-सेय-सलिलाविलावलिया ॥ २२६७ ॥ मुत्तुं हलाई पत्ता, झड त्ति गंतुं तले तमालस्स । निवसंति सीयलानिलजायसुहम्मुक्कसिक्कारा ॥ २२६८ ॥ अन्नोन्नं जपंताण, ताण पुत्तो पिया गहियभत्तं । किं बिंति इमे ति ठिओ, उसप्पिणिए मुणि व झाणगउ ॥ २२६९ ॥ तरुअंतरिए जणए, जंपइ रणविक्कमो अहो भाया । पेच्छह जह अइरुदं, दारिदं दूमए अम्हे || २२७० ॥ बालत्ताओ वि अच्चंतअरसविरसन्नपाण-भोयणओ । समणाण व अम्हाणं, देहे दोबल्लमुल्लसइ || २२७१ ॥ अमइललहुअबहुच्छिड्दंडियाहरियरुक्ख-किसदेहा । रंकालंकारधर व्व सव्वया दुहपयं जाया ॥ २२७२ ॥ इहलोयपारलोइयसुहाण पत्तं कहं भविस्सामो । जेणम्हाण न एगो वि, अत्थे धम्मत्थकामाणं ॥ २२७३ ॥ एमेव परियडामो, अम्हे भोगोवभोगपरिहीणा । मलपडलसामलंगा, छायापुरिस व्व सव्वत्तो ॥ २२७४ ॥ पत्तं पि न पत्तं चिय, नरत्तमुवगरइ जं न कस्सावि ।। मडयं पि वरं जं सावयाई भक्खंति आतित्तिं ॥ २२७५ ॥ नूणं निरज्जमाणं रज्जं पि हु जाइ जणयदिन्नं पि । पररज्जसिरिं पहढेणाऽऽयट्ठइ उज्जमुज्जुत्तो ॥ २२७६ ॥ जइ भवह मह सहाया, तुब्भे ताहं धुवं अवंतीए । गंतुमवंतीवइनिवकन्नं, परिणेमि मयणसिरिं ॥ २२७७ ॥ अजिणमए तिमिरतिरोहिएण रयणीए भेरवाययणे । निसुओ निमित्तनाया एवं सिस्सस्स साहंतो || २२७८ ॥
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