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________________ तवोवरिचंदकंतकहाणयं ४१५ एवं कल्लामाणं, सामग्गी उत्तरोत्तरा होइ । केसि पि सउन्नाणं, जायासा बुज्झ सव्वा वि ॥ ५३१८ ।। ता सुणह भवविलासो, नारय-तिरि-नर-सुरस्सरूवो वि । निस्सेसदुहट्ठाणं, पायं पावेण पाणीणं ॥ ५३१९ ॥ पारद्धिपरा मुहु-मज्ज-पाइणो मंस-भोइणा कूरा । थी-बाल-लिंगि-वह-कारिणो य घणगहणदित्तदवा ॥ ५३२० ॥ . निक्कुट्टेमि सयं चिय, सबालवुड्ढे विरिओ नरतिरिच्छे । देसे विनिद्दहिस्संति, रोद्दट्टज्झाण-गुरुपावा ॥ ५३२१ ॥ इच्चाइमहापावेण भारिया जंति नरय-पुढवीसुं ।' सत्ता सहति सययं, तासु महाणुब्भवं वियणं ॥ ५३२२ ॥ संकडमहघडियालयपोढंगायट्टणुब्भवं दुक्खं । तो तिव्ववज्जकंटयसिलायलप्फालणदुहं च ॥ ५३२३ ॥ तद्देहुक्कत्तियमंसभोयणं तत्ततउरसप्पाणं । । कुंभीपयणं करवत्तदारणं खंडणं सयहा ॥ ५३२४ ॥ पज्जलिरतंबरससरियतारणं पीलणं च जंतेहिं । धंतग्गि-वन्नपित्तल-पुत्तलियालिंगणं च सया ॥ ५३२५ ॥ असिपत्तवणनिवाडियपत्तच्छिज्जंतगत्तभवपीडं । ईय परमाहम्मिकयमन्नोन्नुद्दीरणभवं च ॥ ५३२६ ॥ पहु ! मा मारह अम्हे दासे निए त्ति जंपिरा दीणं । अइविरसमारसंता वि नेव पावा उ छुट्टति ॥ ५३२७ ॥ तिरिय-नर-भवंतरियासु भमियसत्तसु वि नरय-पुढवीसु । कल्लाणभायणत्तेण के वि पावंति जिणबोहिं ॥ ५३२८ ॥ सेवइ सुहिं सकज्जे, कयकज्जो जो तमुज्झए झ त्ति । पिसुणो माया बहुलो, तिरियगई जाई सो सत्तो ॥ ५३२९ ॥ तत्थेगिदियसत्ताजल-दल-फल-कुसुम-इंधण-कणत्थे । विसहंति वेयणाओ, अनिलानलमद्दियच्छेय ॥ ५३३० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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