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________________ ४१४ सिरिअणंतजिणचरियं । तो नरनाहो मय-चंचलुद्धमुद्धालिवलयकलियकडे । आरूढो सिंगारियगिरिगरुयगइंदरायम्मि ॥ ५३०५ ॥ सियछत्तरियरवीरमणीकरचलिरचमरकयसोहो । करिघडरहवूहहयोहजोहसंदोहसोहघरो ॥ ५३०६ ॥ नियरिद्धिभरविडंबियसक्को रिउचक्ककयमणधसक्को । कुसुमावयंसयम्मि य रम्मुज्जाणम्मि संपत्तो || ५३०७ ॥ पेच्छइ पिसंडिपंकयकयासणं अमरधरियसियछत्तं । कणयाभं आसणपहपिंगं पिव केवलिं तत्थ ॥ ५३०८ ॥ विलसंतकेवलं पि हु सुहयरसाहुरईय परिवारं । संतावयं पि सययं उप्पाईय सव्वजणसोक्खं ॥ ५३०९ ॥ तं दटुं मुंचइ पंचसयचिंधेहिं सहकरेणुवाहाणं । विसइ सहमुवउत्तो राया रइयुत्तरासंगो ॥ ५३१० ॥ सह मंडलीय-सामंत-मंतिअंतेउरीहिं केवलिणो ।। कयतिप्पयाहिणो पणमिऊण पुरओ समुवविट्ठो ॥ ५३११ ॥ पहुणा वि सुरासुरसह ठिएण घणगज्जिरमहुरसद्देण । सद्देसणा नरिंदं उद्दिसिऊणं समारद्धा ॥ ५३१२ ॥ तो नरवइ आयन्नसु, संसारे संसरंतसत्ताणं । कालो अणंताणंतोणंतकाएसु अइक्कमइ ॥ ५३१३ ॥ तत्तो य उव्वट्टाणं पत्तेयं ते असंखकालठिई । एस च्चिय विन्नेया पुढवी-दग-अनल-अनिलेसु ॥ ५३१४ ॥ तत्तो य वेइयासुहकम्माओदियम्मि ईसि सुकयम्मि । पावंति जंगमत्तं, तम्मि य पंचिदियत्तं च ॥ ५३१५ ॥ तम्मि वि मणुस्सभावो दुल्लंभो सो वि आरिए खित्ते । तत्थ वि सुकुलुप्पत्ती, तीए वि निरुया सरीरट्ठिई ॥ ५३१६ ॥ देहारोगत्तम्मि वि, अविप्पयारयगुरूणमागमणं । जायम्मि तम्मि दुलहं, गुरुपयपउमंतिए गमणं ॥ ५३१७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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