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________________ ४१६ सिरिअणंतजिणचरियं हम्मंति वराडयसंख-सुत्तिकज्जे बिइंदिया पायं । किमिगंडोलयपमुहा य ओसहाइप्पयाणेण ॥ ५३३१ ।। तेइंदिया य मंकुण-लिक्खा-जूयाइया अणज्जेहिं । मारिज्जति वराया तावाइसु खिविय खट्टाइं ॥ ५३३२ ॥ जंति खयं चउरिंदियजीवा धूमाईहिं मसगाई । मच्छिय-कुत्तिय-भामर-महुकज्जम्मि य जलणजोगा || ५३३३ ॥ पंचिंदिया उ तिरिया, तिहिं पयारेहिं हुंति विन्नेया । एगे जलुब्भवा, थलभवा चार-नहयरा अन्नो || ५३३४ ॥ जलजंतुणो कुलीरा मयरा कुंभीर-मच्छया-हरिणो । इच्चाइणो परुप्परभक्खणदुक्खाई पावंति ॥ ५३३५ ।। जलगब्भपरिब्भमिरे जालगलाईहिं कड्ढिउं कूरा । मंसासिणो विणासंति, जलयरमंसरसलोले ॥ ५३३६ ॥ थलचारिणो य जीवा, सस-संबर-हरिण-सूयराईया । डज्झिरदेहादवपावएण पावंति पंचत्तं ॥ ५३३७ ॥ अवरुप्परवेरविरुद्धबुद्धिणो माण-कोवकलुसमणा । झिज्जति जुज्झिऊणं, खरयरपयनहरपहरहया ॥ ५३३८ ॥ के वि हु परुप्परं भक्खणेण पारद्धिया हया अन्ने । अवरे उच्छलियछुहा तिसाहिं खीणा खयं जंति ॥ ५३३९ ॥ अवरे पुण दहणंकण-बंधण-वह-वाहयोहदुहहियया । पावंति गुरुकिलेसं दुस्सहबहुवाहिविहुरा य ॥ ५३४० ॥ एवं अकामनिज्जरनिज्जरियअसायभूरिकम्मभरा । सम्मत्ताइगुणाणं, अन्नयरं के वि पावंति ॥ ५३४१ ॥ जे दाणव्वसणपरा अप्पकसाया य सरलया कलिया । नेमत्थत्थाइगुणाहिं संगया जंति मणुयगई ॥ ५३४२ ॥ तत्थ वि य रुंददारिद्ददुग्गदोहग्गदूमिया दूरं । रोगायंकव्वसावडिया य सहति दुहनिवहं ॥ ५३४३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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