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रयणावलिकहा नववयविरायमाणा अमाणमाणिक्कमयकया भरणा । कलिरी कलाकलावं अइवाहइ बालिया कालं ॥ ३६५८ ॥ केणावि कारणेणं सरजलखंभयमंदिरे वसइ । एगागिणी न चेव य अम्हे तं सामि ! जाणामो || ३६५९ ॥ दूरे नरसंचारो पायं गच्छइ न तत्थ महिला वि । धम्मकिरियत्थमेगा तत्थ पुण तवस्सिणी चडइ ॥ ३६६० ॥ तं सोउं तुट्टेणं दोन्नि वि सम्माणिया महीवइणा । पाहुणया गोरव्वा इयरे वि न किं पियाकहया ॥ ३६६१ ॥ विप्पे विसज्जिऊणं मंतइ राया समं अमच्चेण ।। गुत्तं कज्जं काउं किं मंतइ कोइ जणमज्झे ॥ ३६६२ ।। भणइ निवो मंति । अहं गच्छिस्सं तत्थ तं पि आगच्छ । सिज्झइ दुसज्झं पि हु सुसहायाणं जओ भणियं ॥ ३६६३ ॥ असहायाण न सिद्धी सुठु वि माणुन्नयाण पुरिसाण । अग्गी वि तेयरासी पवणेण विणा न पज्जलइ ॥ ३६६४ ॥ साहिस्समहं पोरुससज्जं साहेज्ज बुद्धिसज्झं तं ।। अवरस्स विस्ससिज्झइ न जओ तं नेमि तेणाहं ॥ ३६६५ ॥ इय मंतिऊण राया मेलिय सामंत-मंडलेसाई । भणइ महालच्छीमंतमहमहो साहइस्सामि ॥ ३६६६ ॥ तम्मि उत्तरसाहयसाहेज्जं मह करिस्सइ अमच्चो । ता तुब्भेहिं न कज्जा अवसेरी मह अदंसणओ || ३६६७ ॥ रज्जसिरीकज्जाइं चिंतिस्सइ मह महन्नवो मंती । खलिही जो एयाणं तमहं चिय सिक्खविस्सामि ॥ ३६६८ ॥ इय भणिय जणसमक्खं मंतिसुयं ठविय रज्जकज्जेसु । छन्नो निसीहसंमए सामच्चो निग्गओ राया ॥ ३६६९ ॥ दो वि कयवंठवेसा गोदुद्धनिबद्धसुद्धमिउकेसा । धणुतूणीरविहत्था विगयगरुया जंति मग्गम्मि || ३६७० ॥
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