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________________ २८८ सिरिअणंतजिणचरियं वामस्सरतारगइस्सा मासंसियसरीरकुसलसुहा । दाहिणदिसि दिन्नसरतित्तिरसाहियरमणिलाहा ॥ ३६७१ ॥ गामागर-गिरि-सरिया-रन्नाइन्नं महिं समक्कमिउं । अणवरयपयाणेहिं कुंतलतिलयं पुरं पत्ता ॥ ३६७२ ॥ तं नयरपरिसरम्मिं पेच्छंति सरं अदिट्ठपज्जंतं । सुरनिम्महणभएणं नासियपत्तं जलनिहिं वा ॥ ३६७३ ॥ ठाणे ठाणे दीसंति जत्थ डिंडीरपिंडपडलाइं । सरयब्भाई व अइउच्चखंभअभिडणपडियाइं ॥ ३६७४ ॥ तडअभिडंतकल्लोलथूलउच्छलियसलिलबिंदूहिं । नरवइ उवायणम्मि जं वियरइ मोत्तियाइं व ॥ ३६७५ ॥ उल्लसियपुंडरीयं परिविलसिररायहंसकयसेवं । जं सहइ सारसहियं सकमलकोसं निवकुलं व ॥ ३६७६ ॥ तम्मज्झे अवलोयंतिक्खंभभवणट्ठियं तयं तरुणिं । कित्तित्थंभनिवेसियपरिविलसिरकित्तिपडिमं व ॥ ३६७७ ॥ जीए अबद्धलक्खावलोयणे नयणकंतिवित्थारं । ससिजोण्हपाणलोला चुंबति चिरं चउरवया ॥ ३६७८ ॥ जा नियकरयलकयकुसुमकुडयालग्गभमरमंडलयं । भद्दक्खमालियं पिव धरइ करे मंतमिव जविओ ॥ ३६७९ ॥ सव्वंगसोणरयणाभरणपहापडलपाडलियगयणा । कंकेल्लिवणावास व्व जा थिरा रइयसंझ व्व ॥ ३६८० ॥ अच्चंतअगाहसरोजलम्मि पडिबिंबमागया सहइ ।। नेही मा कोइ ममिति पवेसिउं तत्थ लुक्कं व ॥ ३६८१ ॥ तं दठुमाह मंती जह दिळं सामिणा सिविणयम्मि । तह सव्वं चिय मिलियं सिविणे वि न उत्तमा अलिया ॥ ३६८२ ॥ ता निच्छएण सच्चिय खंभग्गठिया इमा पिया तुज्झ । परिणयणं पि हु भविही जायं जह दंसणमिमीए ॥ ३६८३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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