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रयणसुंदरकहा अत्थाणत्थं निवई मंती विन्नवई तुम्ह विरहम्मि । पहु ! जमसुहमिहजायं तह मा होउ जयं रिऊणं पि ॥ ६१६४ ॥ इय जंपिय अंतेउरपमुहजणेणं जमासि पारद्धं ।, मरणंतसाहसंतं कहियं तेणावणीवइणो ॥ ६१६५ ॥ तं सोउं नरवइणा संभासेऊण सव्वलोयस्स । विहिओ उत्तमवत्थाहरणेहिं विसिट्ठसम्माणो || ६१६६ ॥ भणियं च मा कयाइ वि एवंविह साहसं करिज्जाह । सम्ममनायं कज्ज कीरतं असुहमावहइ ॥ ६१६७ ॥ पुणरवि पुच्छइ मंती नरेसरं नमिय सविणयं सामि ! । नियगमणागमणाणं अम्हाण वइयरं कहह ॥ ६१६८ ॥ तो दाहिणपासट्ठियमणिमयभद्दासणे समुवविठं । आइसइ सुरं तं अमर ! कहसु मम सव्व वुत्तंतं ॥ ६१६९ ॥ भणियं सुरेण तं मंति ! सुणसु गयरयणिपरदिणनिसाए । पहरदुगावसेसाए जग्गियं जाव भूवइणा ॥ ६१७० ॥ ता आयन्नइ अइदीणनयणारुइयरावमसममसुहं । आगरिसं तं व मणं दूरं विप्फुरियकरुणरसं ॥ ६१७१ ॥ तो सहस च्चिय सेज्जं समुज्झिओ झ त्ति उठ्ठिओ नियइ । सव्वे पि जामइल्ले निद्दाभरनिच्चलसरीरे ॥ ६१७२ ॥ तो परिविरइयवरवंठवेसनिबिडयरविद्धसुद्धरहो । करविलसिरकरवालो सरियसरं चडइ पासाए || ६१७३ ॥ तो नियइ सत्तमाए भूमीए वज्जपोत्तियभमीहिं । विलसिरपिसंडिदोलादंडं सेज्जं समारूढं ॥ ६१७४ ॥ इद्दामजोव्वणुल्लसियललियलायन्नपुन्नसव्वंगि । हरयमुत्ताहलभूसणप्पहाहरियनिसि-तिमिरं ॥ ६१७५ ॥ अच्चब्भुयरूवाहरियगोरिरइरंभसिरिसरीरसिरिं । कंचणगोरिं रमणिं अट्ठारस वरिसदेसीयं ॥ ६१७६ ॥
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