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सिरिअणंतजिणचरियं उववेसिय तं भद्दासणम्मि विणएण विन्नवंति इमं । जुज्जइ अम्हाण गई, तत्थ न पहुणो इहागमणं ॥ ५५६५ ॥ रायाह मह सुदओ महनन्नो जीविय व्व दाया जं । पच्चुज्जीवइ ठाउं ता किं तीरइ निमेसं पि ॥ ५५६६ ॥ जइ पाणदायगाणं पि अरिहए नेव गोरवं काउं । • ता नूण पउत्थ च्चिय अवयारन्नूण वत्ता वि ॥ ५५६७ ।। पत्ते महावयारिम्मि जे न पडिवत्तिमवि पकुव्वंति । ताणमहंकारविसप्पणट्ठचित्ताण ण विवेगेण ॥ ५५६८ ॥ गरुओ हमिमो लहुओ त्ति जा मई सा हु तुच्छपयईण । गरुयाण पुणो गरिमा वद्धइ गुणिपक्खवाएण ॥ ५५६९ ॥ ता नियमईए मन्ने किं पि अजुत्तं मए कयं नेव । अवरं च न नेहवसा मुणंति उचियाणुचियकच्चं ॥ ५५७० ॥ ते बिंति देव ! सेवयजणोचियं तं जमुत्तमम्हेहिं । तं चिय पहूहिं विहियं नायगधम्मस्स जे जोग्गं ॥ ५५७१ ॥ रायाह कहसु जह जीविओ तुमं तयणु नमिय नरवइणो । साहइ वसंतदेवो सव्वं पि निसीहवुत्तंतं ॥ ५५७२ ॥ ता जाव अदिस्सेहिं बद्धं बंधेहिं साइणीविंदं । चिट्ठइ मसाणमज्झे तो विम्हइओ भणइ निवई ॥ ५५७३ ॥ मयमवि कयाइ ठाही उवविठं जमिह बिंति नो चित्ता । तं मरिउं पच्चुज्जीविएण सव्वं कयं तुमए ॥ ५५७४ ॥ तं नत्थि संविहाणं संसारे जं न संभवइ एसा । सिद्धतुत्ती मिलिया तं मरिउं जीविओ जमिह ॥ ५५७५ ॥ सक्खापेक्खियमवि जं साहिप्पंतं अलीययं देइ । तं पि इह विहिविलासो दंसइ पच्चक्खलक्खेण ॥ ५५७६ ॥
जं सत्थे वि न मुच्चइ दिळं पि न जं पुराणपुरिसेहिं । ... 'तं पि इह विहिविलासो दंसइ पच्चक्खलक्खेण ॥ ५५७७ ॥
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