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________________ ४३३ तवोवरिचंदकंतकहाणयं दो निर. मुहासो कड्ढिय वसंतदेवेण सरसवाईहिं । मंतुच्चा पमुख्छ, पहओ सो साइणी विसरो ॥ ५५५२ ॥ दो तं मंतप्पभवप्पभावओ साइणीओ सव्वाओ । रडं मा वि आसे बंधनद्धाओ विहियाओ ॥ ५५५३ ।। तव्वेलं चिय वलिऊणमागओ विज्जुखित्तकरणेण ।। पायारमइक्कमिउं पत्तो सत्थाहिवगिहम्मि ॥ ५५५४ ॥ पेच्छइ तं परियणपरिगयं पि करुणस्सरेण रुयमाणं । सत्थाहिव ! मा रोवसु अहमिह पत्तो त्ति जंपइ य ॥ ५५५५ ॥ अह गुरुअच्छरियकरं तं दळु उल्लसंतपरिओसो । गाढक्कंठो कंठे विलग्गए तस्स सत्थवई ॥ ५५५६ ॥ परिवारेणं सत्थाहिवस्स विमियमाणेण तो सहसा । परिवाइयाई वद्धावणयच्छंदेण तूराई ॥ ५५५७ ॥ आयन्नियाई रन्ना सुहिमरणा सुहअपत्तनिद्देण । भणिओ य पडीहारो मह असुहे को सुही पावो ? ॥ ५५५८ ॥ वद्धावणयं वज्जइ गिज्जइ य मिउस्सरेण रमणीहिं । ता तं सबालवुड्ढं पि धरिय निक्खिवसु गोत्तिगिहे ॥ ५५५९ ॥ आएसो त्ति भणित्ता उब्बडभडचडयरेण पडिहारो । सत्थाहघरे पत्तो, वसंतदेवं नियइ तत्थ ॥ ५५६० ॥ तो रायप्पडिहारो पहरिसवियसंतनेत्तसयवत्तो । तुरियं चलिउं रन्नो तप्पच्चुज्जीवणं कहइ ॥ ५५६१ ॥ अच्चंतं अघडतं तमईवअसंभवं असद्धेयं ।। सोऊण पीइदाणाइ देइ नरिंदो सिरिं तस्स ॥ ५५६२ ।। पेरिज्जंतो चित्तुल्लसंत असमाणसहिमिणेहेण । पत्तो सत्थाहघरे खमइ सिणेहो किमु विलंबं ॥ ५५६३ ॥ दर्छ निवमब्भुट्ठति सत्थनायगवसंतदेवो ते । पणमंति य तप्पयपउमचुंबिणा भालफलएण ॥ ५५६४ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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