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________________ ३२२ । सिरिअणंतजिणचरियं इय जंपिय रयणप्पहकुमरस्स सपरियणस्स नरनाहो । विरइय सम्माणं वज्जविलसिराभरणवत्थेहिं ॥ ४११३ ॥ नहयरपुरगमणमणो सामंते मुयइ रज्जरक्खत्थं । न थिरम्मि वि विस्सासो कीरइ किमु चलनिवसिरीए ॥ ४११४ ॥ पउणं करेइ राया गय-हय-रह-जोहसोहियंतेणं ।। विज्जाहरविज्जाबलपभावओ सो गओ गयणे ॥ ४११५ ॥ उत्तरदिसाए गच्छइ भूरिबलो धणयमभिहणिउकामो । मज्झ वि बीओ अवरो वि रायराओ त्ति कुविओ व्व ॥ ४११६ ॥ अनिलचलकयलिओहा करिणो गच्छंति मयजलप्पवहा । उड्डुति विहियपक्खा गिरिणो व्व पुणो सनिज्झरणा || ४११७ ॥ चलतुरयभालतवणीयजणियदिप्पंतदप्पणालीओ । रेहति भासुराओ रविबिंबपरंपराओ व्व ॥ ४११८ ॥ सोहइ गयणुच्छंगो संदणगणकणयकलसकमणीओ । दिवसम्मि वि परिपसरियतारयसमलंकिओ व्व धुवं ॥ ४११९ ॥ माऊरमेहडंबरनवरं गयधवलछत्तविंदाइं । नीलासियसोणस्सेयपंकयाइं व नहनईए ॥ ४१२० ॥ अनिलचला धवलद्धयचिंधालंबा सहति सव्वत्तो । सारयरिऊसंभविभमिरसुब्भअब्भावलीओ व्व ॥ ४१२१ ॥ घणवन्नमणिविमाणप्पहाभरो पसरिओ गयणगब्भे । पट्टउयवत्थपडमंडवो व्व वित्थारिओ भाइ ॥ ४१२२ ॥ इय भूरितरव्वइयरविरायमाणो नरेसरबलोहो । गच्छंतो संपत्तो रहनेउरचक्कवालपुरे ॥ ४१२३ ॥ . वज्जिरमहुराउज्जं नच्चिरविलयं पढंतमग्गणयं । विहिओ पुरे पवेसो सूरप्पहराइणा रन्नो ॥ ४१२४ ॥ आवासिओ य आरामरम्ममाणिक्कमंदिरे रूंदे । अमरवइ व्व सुहम्मावयंसनामे विमाणम्मि ॥ ४१२५ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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