________________
जलसारकहा
तिहुयणगुरुणो सिरिरिसहसामिणो नमिय पायसयवत्तं । कयकरकोसो आणंद अंचिओ संथवं काहं ॥ ८०७७ ॥ कणयच्छविणो अंसावलंबिणो कसिणकुंतला तुज्झ । मंदरगिरिणो पंडगतमालतरुणो व्व रेहति ॥ ८०७८ ॥ जे सामिसाल तुह पयलीणा दीणा वि ते नरा नूणं । भवताववज्जियंगा विलसिरपउमालया हुंति ॥ ८०७९ ॥ मइ - सुय - ओही - मणपज्जवाणि तुह केवलम्मि मग्गाणि । तारय-नक्खत्तग्गह- ससिणो व्व सहस्सकरतेए || ८०८० ॥ तं सामि ! समवसरणम्मि सोहसे रईयरम्मचउरूवो । नारय- तिरिय-नरामर - चउगइजणबोहणत्थं व ॥ ८०८१ ॥ रायाणं रंकाण य धम्मुवएसं तुमं समं देसि । किं जयमुज्जोयंतो मेच्छकुलाई चयइ सूरो ॥ ८०८२ ॥ तुह मिलणे मह जाओ बहुमाणवसेण रम्मरोमंचो । घणसमयम्मि कयंबस्स सव्वओ कुसुमनियरो व्व ॥ ८०८३ ॥ इय तीइ वक्केसिरि-नेमिचंद - मुणिनाह - नमियपयपउम ! । जह जाया तुह सिद्धी तं तुह मज्झ वि पहु ! पयच्छ ॥ ८०८४ ॥
इय थोडं रिसहजिणं उवविट्ठो तयणु चंदतेओ से ।
पणमिय कयंजलिउडो उवविसिउं भणइ मुणिमेवं ॥ ८०८५ ॥
भयवं ! नरत्तनियजम्मजीवियव्वाण वसणठाणाण ।
देव - गुरुदंसणेणं मन्ने अज्जेव सहलत्तं ॥ ८०८६ ॥
ता पहु ! मह कहसु अवत्थसमुचियं धम्मं अह कहइ साहू । पूइज्जइ एस पहू अट्ठ पगाराहि पूयाहिं ॥ ८०८७ ॥ तहाहि
-
नेवज्ज-गंध-अक्खय - दीवय - फल-सलिल - कुसुम - धूवेहिं । जिणपूया भत्तीए रईया वियरइ सिवसुहाई ॥ ८०८८ ॥
Jain Education International
६२९
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org