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________________ ६३० दूरे धणक्कयुब्भववासप्पमुहाओ सत्त पूयाओ । एक्का वि मुहा लब्भा जलपूया हरइ संसारं ।। ८०८९ ॥ जओ - सिरिअणंतजिणचरियं जलभरियपत्तमित्तो संसारमहोयही फुंडतस्स । । जो ठवइ जिणस्स पुरो सीयलजलपुरियं पत्तं ॥ ८०९० ॥ फलिहेण व सच्छेणं अमएण व साउणा जिणवरिंदं । सीएणं सिसिरेण व जलेण अच्चंति कयपुन्ना ॥ ८०९१ ॥ जेण जिणाओ न अन्नं पूयापत्तं समत्थि ति-जए ता पूइऊणमेयं सहलं मणुयत्तणं कुणसु ॥ ८०९२ ॥ तं सोउं सो जंपइ नमिऊण मुणिं निबद्धकरकोसो । भयवमणुग्गहिओ हं समयोचियधम्मकहणेण ॥ ८०९३ || ईय जंपिउं गओ गिरिनिज्झरणनिवायसंदकुंडम्मि । कयकमलपत्तपुडए गहिय जलं जिणहरं पत्तो ॥ ८०९४ ॥ दट्ठूणं भुवणगुरुं सुमरियपुव्विल्लनियसिरिप्फुरणो । चिंतइ तइया नाहो जिणनाहो मज्झ जइ हुंतो ॥। ८०९५ ॥ ता हं नियसिरिवित्थरसमवत्थुगणेण नूणमच्चं । एहि एयावत्थो करेमि एयं पि जलपूयं ॥ ८०९६ ॥ इय चिंतिय असमुल्लसियभत्तिपब्भारपुलईयसरीरो । पसरंतभूरिआणंदअंसुदंतुरियपम्हच्छो । ८०९७ ॥ मुंचइ पहुणो पुरओ जलपुडयं अत्तणो परिकलंतो । नरजम्मजीवियव्वाण सहलयं भुवणपणयस्स ।। ८०९८ ।। भणइ मुणी धन्नो ते पयडइ पुलओ तुहंतरं भक्तिं । इंति न दुद्धे पीए उग्गारा आरनालस्स ॥ ८०९९ ॥ सिवलच्छिपेच्छियाणं उच्छाहो होइ एरिसोवस्सं । न हि सुकयसंगयाणं धम्मम्मि अणायरो होइ ।। ८१०० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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