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________________ ५८६ तो वंतरेहिं विहिए पहुपडिरूवत्तिगम्मि रमणीए । उवविट्ठे य दुवालसभेयविभिन्ने सहालोगो ।। ७५२३ ॥ पहुपयपणामपुव्वं मणि-कंचणसाल अंतरालम्मि । उज्झियसासयवेरे तिरियगणे लीयमाणम्मि ।। ७५२४ ॥ पत्तो कयंबयाभिहगिरिनिवडाओ कयंबपुरनयरा । राया कयंबपरिमलनामो जाणिय जिणागमणो ॥ ७५२५ ॥ करि-तुरय- रहवरारूढराया सामंतमंति-मंडलिओ । वज्जिजय आउज्जो आरूढो विमलगिरिसिहरे ।। ७५२६ ॥ अवलोयंतो भूमंडलम्मि इंताई रायचक्काई । पेच्छंतो य नहयले कणंतकिंकिणिविमाणाइं ।। ७५२७ ॥ वावी - जलस्सिणाओ निम्मलनवधोय-पोत्तिपावरणे । पविसंतो पहुमिक्खय जंपर "जिण " जय जय जयति ॥ ७५२८ ॥ सामि समीवे गंतुं विरइय ति पयाहिणो पणमिऊण । कयपाणिकमलकोसो एवं थोउं समाढत्तो ।। ७५२९ ।। जय निम्मलनाणाणंत तुह अणंतत्थयं करिस्सामि । जिणराय ! निययनालग्गलग्गकरकमलकयकोसो || ७५३० ॥ सिरिअणंतजिणचरियं तिहुअणपहुणो न पुरंदरो वि उवमाणठाणमणुसरइ । जम्मि दिणाओ वि जो तुज्झ किंकरत्तं समणुपत्तो ॥ ७५३१ ॥ पर- नियखित्तुज्जोएण भाणुणा कह करेमि उवमंते । पसरइ नाणालोओ लोयालोएसु जं तुज्झ ॥ ७५३२ ॥ कलइ कलाए वि तुलं कलावई न तुह जं तमेणं सो । सामि ! गमिज्जइ तं पुण लीलाए वि पहणियं तुमए ॥ ७५३३ ॥ का उवमा जगगुरुणो तुह सुरगिरिणा वि जं तए नीओ । जम्मसिणाणे सोआसणत्तमच्चंतगुरूओ वि ।। ७५३४ ॥ पहु ! तुह कह उवमिज्जइ निस्सीमजडासओ समुद्दो वि । तिजयुब्भववत्थवियाणणखमाणंतनाणस्स ॥ ७५३५ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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