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रणविक्कमकहा जं जस्स पुव्वविहियं धणधन्नं कंचणं कलत्तं च ।। तं तस्स मग्गलग्गं एइ घरं अप्पणा चेव ॥ ३२४९ ॥ राय ! तए जं पुच्छियं तयं साहुदाणपभवस्स । पुन्नडुमस्स तुह रज्जलच्छिरूवं फलं कहियं ॥ ३२५० ॥ पत्ते दिन्नं थोवं वि कारणं होइ गरूयरिद्धीणं ।। एक्कफलसंभवो किं न तरू वियरइ बहुफलाइं ॥ ३२५१ ॥ अणुमवि सुपत्तनिहियं न खयं वच्चइ कयाइ नियमेण । मयरहरम्मि निहित्तो जलबिंदू सासओ होइ ॥ ३२५२ ॥ दाणं थोवं पि सुपत्तजोगओ हवइ भूरि भोगाय । लहुया वि दीवयसिहा वित्थारइ भूरि उज्जोयं ॥ ३२५३ ॥ जइ थोवेण वि धम्मेण राय ! तं दिठ्ठपच्चओ जाओ । ता तं कुणसु बहुं पि हु न दिट्ठलाहा पमायपरा ॥ ३२५४ ॥ सोउं नियपुव्वभवं राया ससहोयरो सभज्जो वि । जाइस्सरणेण तयं सक्खं व परोक्खमवि नियइ ॥ ३२५५ ॥ भणइ य पणामपुव्वं भयवं ! जह साहियं तए अम्ह । सव्वं पि तहम्हेहिं वि जाइस्सरणेण सव्व वियं ॥ ३२५६ ॥ ता रइय रज्जचिंतो अहं महापहु ! तुहक्कमारामे । निव्वुयमणो रमिस्सं सया वि हरिणो व्व हेलाए ॥ ३२५७ ॥ इय विन्नविय नयगुरू समंडलीओ स-मंति-सामंतो । संतेउरो स-पउरो सपरियणो जाइ पासाए ॥ ३२५८ ॥ भोयणकरणाणंतरउवविसियसहाए मेलिउं सयाणे । जंपइ पणइपुरस्सरमम्म-पिओ पमुहसहलोयं ॥ ३२५९ ॥ तायं च भाई-भज्जा सुहिसु सुया सेवयजणा निसामेह । गिहिस्समहं दिक्खं तहा तविस्सं तवं तिक्खं ॥ ३२६० ॥ ता मूलाओ विसवणे. तुम्ह मण-वयण-काय-जोगेहिं । तं किं पि समुप्पाईयमसुहं तं मह खमह सव्वं ॥ ३२६१ ॥
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