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________________ धम्मदेसणा चोरेऊणं धणधन्नकंसदूसाइदच्छमाणेह । चोरो गिहिस्समहं ति पण्णई तक्करपओगं ।। ९९८९ ॥ धणधन्नाई न गेज्झाइं कूडमाणयतुलाइएहिं जओ । एगं लोगविरुद्धं परलोगविबाहयं बिइयं ।। ९९९० ॥ ववहरियव्वं अइलाहलोहओ नो विरुद्धरज्जम्मि । जन्नाउं नियराया कुविओ सव्वस्समवि हरइ ॥ ९१९१ ।। पलवंचियसाईयं वीहिययाईसु न निक्खिवेयव्वं । तप्पडिरूवक्खेवो जमुभयभवबाहओ होइ ॥ ९१९२ ॥ जं सकला कोसल्लावट्ठियं लोयऽविरुद्धलाहकरं । गिण्हेयव्वं तं चिय मोत्तव्वं सेसपरदव्वं ॥ ९१९३ ॥ अवसरइ साहुवाओ अयसो उल्लसइ ल्हसइ गरुयत्तं । उप्पज्जइ बहुपावं ओसरइ जणाणुराओ वि ।। ९९९४ ॥ पलयं पयाइ पुन्नं पावइ गोत्तं पि गरुयवयणिज्जं । विस्ससइ न सयणो वि हु परधणहरणप्पसत्ताण ।। ९९९५ ॥ (जुयलं) भणियं तईयमणुव्वयमेयमईआरवज्जियं सुहयं । इहि पुणो चउत्थव्वयस्सरूवं निसामेसु || ९१९६ ॥ मेहुणवयविसए सावएहिं कज्जो सदारसंतोसो । परदारवज्जएणं च होयव्वं सुद्धसीलेण ॥ ९१९७ ।। इत्तिरियपरिग्गहिया अपरिग्गहिया य थी चएयव्वा । कामे तिव्वहिलासो अणंगकीला परविवाहो ।। ९९९८ ॥ सामन्नेणऽइयरा एए पंचेव साहिया तुज्झ । एक्केक्कं पि विसेसेणमिहिमायन्नसु कहेमि ।। ९९९९ ।। परिमियकालं मुल्लेण वा वि केणावि जा परिग्गहिया । सो उभयभवविरुद्धा मोत्तव्वा इत्तरियवेसा ।। ९२०० ।। अपरिग्गहिया भन्नइ पडिबद्धा होइ जा न कस्सा वि । उच्छन्नकुला असई विहवा वा नेव भईयव्वा ।। ९२०९ || Jain Education International For Private & Personal Use Only ७१५ www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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