________________
२७०
सिरिअणंतजिणचरियं
वलिओ नहयरनाहो न गओ नंदीसरे विरहविहुरो । न कुणइ भोयणपमुहं पि धम्मकरणम्मि का वत्ता ? ॥ ३४४१ ॥ नियनयरमागओ वि हु नयरं नरय व्व पावइ खणं पि । राया वज्जानलसममयणानलजालजलिरंगो ॥ ३४४२ ॥ कुमरीनिबद्धरायं नरेसरं पेच्छिऊण मच्छरिणी । ईसालुय व्व निंदा न ठाइ मग्गे वि नयणाण ॥ ३४४३ ॥ कुमरीनिरक्खणपीऊसरसभरासायजायतित्ति व्व । आहारं पइ राया न कुणइ मणयं पि मणवित्तिं ॥ ३४४४ ॥ अमयकरं पाणहरं नलिणीनालं दवग्गिजालं व । मरणं पिववरभवणं विरायरूवं जयं जायं ॥ ३४४५ ॥ जो हुंतो सुदिढलुयावलेवतणतुसियसयलसुंडोहो । अबलाए वि लीलाए कायराण वि कओ लहूओ || ३४४५ - A || तं तयवत्थं परिपेच्छिऊण मित्तेहिं पेसिओ हमिह । नियपहुहियकरणरया हवंति भव्वा वि किमु सुहिणो || ३४४६ ॥ ता अज्ज वि तह कुमरी कुमारिया नववओ य अम्ह पहू । कारिज्जउ वीवाहो सुरसरिया मिलओ जलहिस्स || ३४४७ ॥ अवरस्स वि दायव्वा ता पत्थितस्स देहि मह पहुणो । जं वल्लहा वि न हवइ सा नियभोगाई जेणुत्तं ॥ ३४४८ ॥ "सगुणा वि सुजाई विय विविहाहरिया वि विविहवन्ना वि । धूया परस्स होही माला इव मालकारस्स" ॥ ३४४९ ॥ तहा - “निय अंगुप्पन्ना वि हु खंधपवुड्ढा वि अइसुपत्ता वि । सहयारस्स व साहा फलकाले होइ परकीया ॥ ३४५० ॥ अपरं च - "बहु विहवपूरिआ वि हु अणेयकम्मयरदाससंजुत्ता । नावच्च नूण धूया सुचिरेण वि परउलं जाइ ॥ ३४५१ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org