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सिरिअणंतजिणचरियं
नरवइमरणं तव्वसणभवेण खणविलंबियुस्सासो ।। लक्खिज्जइ खयरिंदे, आगयमुच्छे व्व निप्पंदो ॥ ४३९८ ॥ जंपइ य रायसुहिओ वि होउ मा दुक्खभायणं जाओ । संपत्ती-विवई विय सह सन्निहियाओ सत्ताण ॥ ४३९९ ।। कय-सुकयं अत्ताणं मन्नते जेण जीविरो पत्तो । निब्भग्गसेहराणं, कत्तो कल्लाणउल्लासो ? || ४४०० ॥ इय जंपतो नहयरनाहो रन्ना पयंपिओ एवं ।। सपियस्स वि अवहारो, कहं जाए तं तए कहसु ॥ ४४०१ ॥ सो आह मज्झ हरिसप्पसरावसरे वि राय ! सहस त्ति । निक्कारणाई जायाई दुन्निमित्ताई देहम्मि ॥ ४४०२ ॥ तो चिंतियं मए एयमसुहसंसूयगं धुवं किं पि ।। इय चिंतिय सव्वत्थ वि सयणाणं कारिया सारा ॥ ४४०३ ॥ नाओ तुह सपियस्स वि अवहारो तयणु केवली पुट्ठो । तक्कहियगिरिम्मि इह परिवारजुओ अहं पत्तो ॥ ४४०४ ॥ दिट्ठो य तुमं तिहुयणगुरुणो पुरओ मए समुवविट्ठो । अक्खयतणू सभज्जो वि नहरिदेण इय कहियं ॥ ४४०५ ॥ एत्थंतरम्मि गयणंगणेण चारणमुणीसरो पत्तो । नामेण मोहमहणो गुरुगुणमणिविंदपरियरिडं ॥ ४४०६ ॥ मइ-सुय-ओही-नाणाई तिन्नि वि जो वहइ निक्कलंकाई । भूय-भवंत-अणागय-कालत्तय-जाणणत्थं च ॥ ४४०७ ॥ काउं निसीहियतिगं तिपयाहिणपुव्वमुत्तम-विहीए । पारद्धो संथुणिउं, भत्तीए वासुपुज्जजिणं ॥ ४४०८ ॥ विदुमसमदेहपहापसरेण दियंतराइं रंजंतो । नीहारतो रायं च जयइ सिरिवासुपुज्जजिणो || ४४०९ ॥ इय थोऊण जिणिंदं, जिणमंदिरभुत्ति-बहिपएसम्मि । सुररईयकणयकमले कंकेल्लितले समुवविट्ठो || ४४१० ॥
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