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________________ सीलोवरिरयणावलीकहा तो सूरप्पहराया, जंपर कल्लाणखेत्तमेस गिरी । जम्मिं इट्ठ दिट्ठ, नउ य देवो गुरू पत्तो ।। ४४११ ।। थावरतित्थजिणनया जंगमतित्थं मुणिंदमिहि तु । चलह नमिमो त्ति भणिए, समुट्ठिया खयर - नर-नाहा ।। ४४१२ ॥ गुरुचरणं तं पत्ता पणया य सुभत्तिनिब्भरा गुरुणो । संपत्तधम्मलाहा, उवविट्ठा समुचिए ट्ठाणे ॥। ४४१३ ।। धम्मसवणुज्जाए, एरिसाए भत्तिजुत्तचित्ताए । सद्देसणा पहूहिं, पारन्द्रा जलहरसरेण ॥ ४४१४ ॥ जीए कहिज्जइ धम्मो, पयडिज्जइ दुहयरो सइ अहम्मो । दंसिज्जइ अट्ठण्ह वि, कम्माणं दारुणविवागो ॥ ४४१५ ॥ अक्खिज्जइ विसयाणं, विरसत्तं वायरिज्जए तत्तं । वारिज्जए अकज्जं, मोइज्जइ परपरीवाओ || ४४१६ || उवदंसिज्जंति महादुहाई सत्तसु वि नरय- पुढवीसु । तिरियत्तणम्मि भन्नइ कयत्थणा दुस्सहा दूरं ॥ ४४१७ || उब्भाविज्जति नरत्तणम्मि सारीरमाणसदुहाई । ईसाविसायपमुहं, असुहं साहिज्जइ सुरते । ४४१८ ॥ वन्निज्जइ मोक्खो वि हु, सम्मं सम्मत्त - नाण - चरणाओ । ईय तीए सयासाओ, हवंति सत्तावगयतत्ता ॥ ४४१९ ।। तो मिच्छत्तं छडुंति, झ त्ति उज्झंति कोवउक्करिसं । तह निम्मर्हति माणं, माया मुसुमूरिय चयंति || ४४२० || लोहं लुंपंति मयट्ठाणाइं निट्ठवंति अट्ठा वि । मोहं मलंति सोयं छलंति कुमई परिहरम्मि ॥ ४४२१ ॥ जाणंति य भवभावे, जहट्ठिए आयरंति सोजन्नं । दूति य दोजन्नं, इंदियपसरं निरुंभंति ॥ ४४२२ ॥ मारं दारंति दोसं हरंति अविरयनायरंति आलस्सं । मुंचति अट्ट-रोद्दे, धम्मं सुक्कं च झायंति ॥ ४४२३ || Jain Education International For Private & Personal Use Only ३४५ www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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