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रयणायरलच्छी विव सिणिद्धबहुभंगभासियपवाला । सुरयणपवित्तवयणा जहा सहइ महाकइकइ व्व ॥ ४०६ ॥ संह परा सुवित्ता जणेण हियए सया धरिज्जति । इय चिंतिउं व देवी तग्गुणसिहिणे वहइ हियए ।। ४०७ ॥ तीयऽत्थि हत्थिमंथरगइगमणा अत्तया गुरुयरमणा । नामेण चंदमाला अरुणाहरनिज्जियपवाला ॥ ४०८ ॥ रूवेण जीए विजिया रई ससिंगारगारवेण सिरी । निययपहुत्तेण सई सोहग्गेणं पुणो गोरी ॥ ४०९ ।। निम्मणस त्ति न रज्जंति तीए रूवेण नूण केवलिणो । अवरे उ मोहिउमलं मोहणवेल्लि व्व सा बाला ॥ ४१० ॥ आगरिसिणि व्व विज्जा नियपासे नेइ तरुणनयणाई | गुरुवेरिणि व्व नज्जइ सा कामिजणं कयत्थंती ॥ ४११ ।। उत्तमरूवं उम्मत्त जोव्वणं पेच्छिऊण तं कन्नं । रन्ना केवलनाणी नमिद्धं पुट्ठो वरं तीसे ॥ ४१२ ॥
सिरिअणंतजिणचरियं
तो केवलिणा कहिओ पहु ! तुह तणओ वरो वरो तीए । तो हं तव्वरणत्थं पहूण पासम्मि पट्ठविओ ॥ ४१३ ॥ ता पहु ! पभणह कुमरं खेयरतणयाविवाहनिमित्तं । इयरा वि आयरिज्जइ नरिंदकन्ना, न किं खयरी? || ४१४ ॥ तो भूवइणा भणियं, खेयर ! जुत्तं पयंपियं तुम । जं काउं अहिलसिओ कुमार - खयरीण संबंधो ॥ ४१५ ॥ इय तं पयंपिउं भणइ नरवई कुमरसम्मुहं एवं । तुम खेयरकुमरीपरिणयणं वच्छ ! कज्जं ति ॥ ४१६ ॥ सो आह ताय ! मा मा मं उवरोहह विसायविसयम्मि एत्थ न परमत्थेणं थेवं पि समत्थि जेण हियं ॥ ४९७ ॥
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