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रणविक्कमकहा
तो सोयभरपरवसदेहा हाहा हह त्ति जंपता ।
जणणिजणयाइसयणा सकरुणमक्कंदिउं लग्गा || २३४४ ॥
हा पुत्ति ! हा पुत्ति ! हा सुप्पवित्ति ! हा, फलिहसच्छमणवित्ति । हा ! धवलकित्ति ! हा ! जयपवित्ति ! हा ! कंततणुदित्ति ! || २३४५ ॥ हा ! दीहदिट्ठि ! हा! पसमपुट्ठि ! हा ! दाणवुट्ठि ! कयतुट्ठि । हा सुद्धबुद्धि ! हा हा विसुद्धि ! हा जायगुरुरिद्धि ! ॥ २३४६ ॥ जावज्जवि अम्हाणं, हियं हयासाण फुट्टइ न जाए ।
ता इहि चिय वियरसु, पडुत्तरमसमदुक्खाण ।। २३४७ ।। एवं भूरिपलावे काउं, दिवसावसाणसमयम्मि । आरोवियसिबियाए, नीयं मडयं मसाणम्मि || २३४८ ॥ जलणायत्ते मडयम्मि, कीरमाणम्मि जायए रयणी । तो जोइणीभएणं न कोइ ठाउं तरइ तत्थ ।। २३४९ ।। मडयस्स रक्खणत्थं पुरीए ते पडहएण पयडिंति । जो रक्खइ निसि मडयं, सो लहइ सुवन्नयसयं ति ॥ २३५० ॥ एत्थंतरम्मि रणविक्कमाईपुरिसतिगम्मि आरामे । उवविट्ठम्मि पविट्ठो, ताण कणिट्ठो पुरीमज्झे ॥ २३५१ ॥ जो असिधें मुत्तूणमावणे भोयणं करावे । ता सुणइ पडहयसराणंतरमेयं कहिज्जंतं ॥ २३५२ ॥ जो रक्खइ रयणीए मडयं गंतुं मसाणमज्झम्मि । दिज्जइ तस्स सुवन्नस्स, गोससमयम्मि सयमेगं ॥ २३५३ ।। तं सोउं सो चिंतइ कज्जे, थोवे वि भूरिधणलाहो । ता गिहिज्जउ जुज्झइ, न पमाओ जमिय कल्लाणे ॥ २३५४ ॥ इय चिंतिय मोयावइ कणयं, मज्झत्थनरकरे सहसा । अहवा सिद्धे कज्जे न नज्जए लब्भए नो वा ॥ २३५५ ।। गहिऊण भोयणं सोइऊण ते भाउणो कहइ सव्वं । साहेयव्वं पच्छा वि जेसि तेसिं न किं पुव्वं ॥ २३५६ ॥
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