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________________ १८४ सिंगाररंगसाला, विलासकलहंसविमलकमलाली । गुणकुसुमावलिमाला, लीलामयदुद्धसिंधुसिरी ।। २३३१ ॥ सद्धिं समाणविन्नाणजाणजोव्वणमणोहरसहीहिं । कीलंती हेलाए, हरइ मणोनयरितरुणाणं ।। २३३२ ॥ अह अन्नया सहीयणमज्झगयाए नहाओ तीए पुरो । पडिओ दड त्ति दीहो, सामलसप्पो फुरियदप्पो || २३३३ || सिरिअणंतजिणचरियं अट्ठट्ठियनियदेहदंडफारप्फणग्गमणिकिरणा । जस्सुल्लसंति रविकिरणमच्छरेणं व जुज्झेउं ॥ २३३४ ॥ निल्लालंतो अच्चंतरत्तमुत्तरलजीहियाजुयलं । कइइव्व दुन्ह इत्थीरयणाणं सरणमणुप्पत्तं ॥ २३३५ ॥ सप्पो सप्पो त्ति पयंपिरीओ नट्ठाओ से वयंसीओ । ईयरम्म वि बीहिज्जर किन्न अवाए सरणरूवे ॥ २३३६ ॥ नासंती सेट्ठिसुया, दट्ठा अंगुट्ठयम्मि पायस्स । जणमज्झम्मि वि जायइ, जमज्जियं जेण तं तस्स ॥ २३३७ ॥ दट्ठा दट्ठा अहिण त्ति जंपिरी भयभरब्भसिरमुत्ती । पडिया दड त्ति मुच्छा, पच्छाइयअच्छिसयवत्ता || २३३८ ॥ वेणीदंडो भमरउलसामलो कंठकंदले तीए । परिभमिओ लक्खिज्जइ, सक्खं चिय कालपासो व्व ॥ २३३९ ॥ मुत्ताहरणगणफुरियकिरणपब्भारधवलियंगी सा । विसहरविसहरणत्थं, नज्जइ अमयाहिसित्त व्व २३४० ॥ जीए विरलट्ठियउट्ठ- पुडविणिस्सरियदंतपहपवहो । जीवो व्व विणिग्गच्छइ, विस-जलणुत्तावभीओ व्व ॥ २३४१ ॥ तो झत्ति जणयजणणीजणेण मणि- मंत-तंत- जंतेहिं । उवयरिहाए वंमये होइ गुणो थेवमेत्तो वि ।। २३४२ ॥ पाउससरि व्व अविरयविसरयलहरीहिं पूरिया दूरं । सउणाण नियंताण वि पत्ता अव्वाहियं तो सा || २३४३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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