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________________ २७८ सिरिअणंतजिणचरियं इय भणिय नरवइणा सव्वुत्तमवत्थभूसणगणेण ।। सम्माणिय खयरिंदो विसज्जिओ गुरुसिणेहेण ॥ ३५४३ ।। करवाललयासामं नहमुप्पइउं गए खयरनाहे । गयमारुहिउं पत्तो निवो वि सबलो सपासाए ॥ ३५४४ ॥ रयणावली वि रयणावलि व्व पाउससिरि व्व सुपयासा । हिययहरा संजाया रन्नो आयन्निया वि धुवं ।। ३५४५ ॥ तव्वसचित्तो तग्गयमणोरहो तग्गुणग्गहणपवणो । तइंसणं सुयमई संजाओ तम्मओ व्व निवो || ३५४६ ॥ तव्विसयविविहविसयाहिलासवसखणविलंबिए विरयं । मुंचइ नच्चाविय अंबरंचले मासले सासे ॥ ३५४७ ॥ अंगे भंगो वयणम्मि दीणया माणसम्मि उम्माओ । सूरस्स वि संजायं विचेट्ठियं कायराणं व ॥ ३५४८ ॥ तव्विरहविहुरयाहरियहिययवावारवरवसीहूओ ।। चिंतइ बलिणी अबला वि कायरो हमवि जीए कओ ॥ ३५४९ ॥ सा समहिया विसाओ न सुयं दिळं च मोहइ विसं जं । सुयमित्ताए वि पुणो सम्मोहो तीए मह दिन्नो ॥ ३५५० ॥ निसुया वि मह जीए हरिया सव्वे वि हिययवावारा । सा सच्चविया काही किं पि हु जं तं न याणामि ॥ ३५५१ ॥ अमुगो इत्थीए वसो त्ति सव्वया जो परं हसंतो हं । सो जाओ बालाण वि हसणिज्जो जेणिमं भणियं ॥ ३५५२ ॥ ताव परो वि हसिज्जइ कीरइ लज्जा थिरत्तणं माणो । जाव सयं न पडिज्जइ अत्थाहे पेम्मकूवम्मि ॥ ३५५३ ।। ता लज्जा ता माणो ता इह परलोयचिंतणे बुद्धी । जाव न विवेयजियहरा मयणस्स सरा पुहुप्पंति ॥ ३५५४ ॥ विज्जाहराहियस्स वि जाया न जाणुरत्तस्स । सा पुरिसवेसिणी मह कह भविही भूपइट्ठस्स ॥ ३५५५ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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