SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 306
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रयणावलिकहा २७७ अवितक्कियाऽऽगएणं ताव जमेणेव वेरिणा इमिणा । दुहिया अदाएण विजयजायरोसेण रुद्घोहं ॥ ३५३० ॥ तप्पायपहरपीडा पडिओ पावेण हणिउमारद्धो । संरक्खिओ तए नरवरिंद ! जो सो अहं एसो || ३५३१ ॥ ता तुह सरिसा पुरिसा विरला लोगोवयारिणो भुवणे । पंचविहे वि हु जोइसचक्के एक्को ससी सुहओ ॥ ३५३२ ॥ ता राय ! तए जं पुच्छियं तयं वेरकारणं कहियं । दिन्ना न सुया जमिमस्स मच्छरी तेणिमो जाओ ॥ ३५३३ ॥ जं पुण वज्जरियमणंतनाणिना जो तुमं हणिज्जतं । रक्खेही जामाऊ होही स तुह त्ति तं मिलियं ॥ ३५३४ ॥ ता निव ! मह वरविसया चिंता नट्ठा झडत्ति तं दट्टुं । पेच्छित्तु नागदमणि भुयंगी किं चिट्ठइ खणं पि ॥ ३५३५ ॥ तुह सरिसो जामाऊ लब्भइ न नरिंद ! मंदपुन्नेहिं । पावति अकयसुकया कयाइ कि अक्खयनिहाणं ॥ ३५३६ ॥ ता राय ! तए संपइ परिणयणप्पउणया विहेयव्वा । सेयाई कज्जाइं निरंतरायाइं दुलहाई ॥ ३५३७ ॥ इय आयन्निय खयरिंदचरियमच्छरियपूरिओ राया । निम्मच्छरो वि धुणिऊण नियसिरं जंपए एवं ॥ ३५३८ ॥ खयराहिरायविन्नायनायमग्गो तमेव नेवन्नो । नट्ठस्स न पिट्ठीए लग्गो जोऽरिस्स सत्तो वि ॥ ३५३९ ॥ बुद्धी वि बंधुरच्चियं जं नियदुहियाहिएक्कहियएण । पुट्ठो अणंतनाणी निउणो किं भुल्लइ कयाइं ॥ ३५४० ॥ जं पुण . भणियं तुब्भेहिं तं वरो मह सुयाए नेवन्नो । तम्मह तव्विसयम्मि गुरुआणा चेव य पमाणं ॥ ३५४१ ॥ विज्जाहराहिवेणं भणियमहं जामि निययनयरम्मि । तुह वीवाहोऽवक्कम्मकज्जाई पि हु करावेमि ॥ ३५४२ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy