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________________ ७४३ ग्रंथकारपसत्थि सुमणसमुणिंदसंसेवियक्कमो नायनिहियमणवित्ती ।। तम्मि पहू उप्पन्नो गुरु व्व सिरिदेवसूरि त्ति ॥ ९५४९ ॥ तस्सऽन्नयम्मि जाओ निग्गंथसिरोमणीसुवित्तो वि । सिरिअजियदेवसूरी कयंतबुद्धी वि कारुणिओ ॥ ९५५० ॥ तो संजाया आणंदसूरिणो जणिय जणमणाणंदा ।। तत्तो य तिन्नि जाया मुणीसरा भुवणविक्खाया ॥ ९५५१ ॥ सिरिनेमिचंदसूरी पढमो तेसिं न केवलाणं पि । अवराण वि समयरहस्सदेसयाणं मुणिंदाणं ॥ ९५५२ ॥ जेण लहुवीरचरियं रइयं तह उत्तरज्झयणवित्ती । अक्खाणयमणिकोसो य रयणचूडो य ललियपओ ॥ ९५५३ ॥ बीओ बीयसमुग्गयचंदकलानिक्कलंकतणुजट्ठी । सिरिपज्जोयणसूरी तिव्वतवच्चरणकरणरओ || ९५५४ ॥ तइया य अमयरसवरिससरिससद्देसणाजणाणंदा । जिणचंदसूरिपहुणो ससहरकरसरिसजसपसरा || ९५५५ ॥ सच्छत्तगुरुत्तगहीरयाहिं लीलाए जेहिं निज्जिणिया । फलिहमणिगयणवित्थरदुद्धोदहिणो गुरुतरा वि ॥ ९५५६ ॥ तो तेहिं दुन्नि विहिया निययपए सूरिणो भुवणमहिया । सरला विलसिरचित्ता समुन्नया दंतिदंत व्व ॥ ९५५७ ॥ सिरिअम्मएवसूरी पढमो तेसिं समस्सिरी भवणं । गुरुरयणरोहणगिरी सरस्सईवासवरकमलं ॥ ९५५८ ॥ जो अक्खाणयमणिकोसवित्तिविवरणकयत्थकयलोओ । सव्वोदारजणाणं चूडारयणत्तमुव्वहइ ॥ ९५५९ ॥ तह बीओ सिरिसिरिचंदसूरिनामो मुणीसरो संतो । संतोसपरो सपरोवयारकरणेक्कमणवित्ती ॥ ९५६० ॥ सिरिअम्मएवसूरीहिं नियपए सूरिणो कया चउरो । हरिभद्दसूरिनामो सिग्घकई पढमओ तेसिं ॥ ९५६१ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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