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सिरिअणंतजिणचरियं
सव्वं पि गुणमयं चिय पडिहाइ जयं विसुद्धहिययाण । मलिणहिययाण तं चिय सगुणं पि हु निग्गुणं होइ ॥ ६४१० ॥ जोईसरी पयंपइ दीणमुदीरइ पहू न सिविणे वि । तेण मणोमयमवि तं न पत्थसे राय ! नायमिमं ॥ ६४११ ।। जाणामि सयं चिय सिद्धमंतदेवाणुभावओ सव्वं । जं तुह कुलनहउज्जोयओ सुओ नत्थि तरणि व्व ॥ ६४१२ ॥ ता चउरासमगुरुणो सगिहप्पत्तस्स अतिहिणो तुज्झ । पाहुत्तयं अपुत्तस्स पुन्नदाणेण काहामि ॥ ६४१३ ॥ ईय जंपिय तीए पसारिओ करो नहयले तओ तम्मि । पडियं झड त्ति परिपक्कपिंगअंबयफलं थूलं ॥ ६४१४ ॥ न निरीहेण वि तुमए निराकरेयव्वमेयमवणिंद ! । जं लोयाणुवयारी इमेण तुह होहिही तणओ ॥ ६४१५ ॥ रिउसमयसिणायाए दइयाए देव ! देज्ज तुममेयं ।। इय जंपिय निवपुरओ तं वरियं तीए सकरठियं ॥ ६४१६ ॥ तमलंघणिज्जवयणा जोईसरिई य पयंपिउं रन्ना । गहिऊण तं फलं नियकरेण संगोवियं सहसा ॥ ६४१७ ॥ तो रयणाभरणाई उत्तमवत्थाई जोगसिद्धीए ।। वियरावियाई जोईसरीए नरनाहहत्थेण ॥ ६४१८ ॥ तो ताई विइन्नाइं निवेण जोईसरीए तीए वि । अब्भुट्ठिऊण दोहि वि करेहिं विणएण गहियाई ॥ ६४१९ ॥ तो भणइ निवो दोन्नि वि जोईसरिजोगसिद्धि मं मुयह । जइ वि हु दुम्मोयाओ तुब्भे मह तह वि जामि अहं ॥ ६४२० ॥ जेणमपुत्तं रज्जं मज्झ विओगे जणो समग्गो वि । धरिहीएण किच्छेण ता न मे जुज्जए ठाऊं ॥ ६४२१ ॥ तं सोऊणं जोईसरीए गुरुगोरवेण कारविया । रन्नो न्हाणविलेवण-भोयण-तंबोलपडिवत्ती ॥ ६४२२ ॥
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