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भुवनपईवनिवकहा सुव्वंति इह भविस्सा सत्थेसु दसाणण त्ति मुंडा दो । नवरं ते पुरिस च्चिय एसो नरनारिरूवो उ ॥ ८३६० ॥ इय चिंतंतो पत्तो रायंगरुहो वि तस्समीवम्मि । सो वि हु पच्छाहुत्तं गच्छइ करणक्कमच्छउमा ॥ ८३६१ ॥ थोवप्पसरप्पउमावसरणकरणक्कमे कुणंतेण । तेणाहियहियहियओ दूरं नीओ नरिंदसुओ ॥ ८३६२ ॥ तइंसिय अवरावरविन्नाणालोयवियलियविवेओ । न मुणइ नयरं दूरे न गणइ मग्गस्समलवं पि ॥ ८३६३ ॥ एत्थंतरम्मि सहसा सो नट्टनरो सरूवमुझेउं । उक्खायनिसायअसी जमो व्व जाओ भडो कुद्धो ॥ ८३६४ ॥ जंपइ रे दुट्ठाहम कुमार ! तं सरसु देवयं इठें । मा भणसु पमत्तो हं विणासिओ केणइ छलेण॥ ८३६५ ॥ तं निसुणिउं कुमारो चिंतइ सुरअसुरनहयरन्नयरो । को वि इमो मह वेरीछलेण जेणाणिओ हमिह ॥ ८३६६ ॥ वीसासिऊणमेवं जो जायइ घायगो न मोत्तव्वो ।। हंतव्वो चिय भन्नइ सो नूणं नीइसत्थेसु ॥ ८३६७ ॥ इय चिंतिय आयड्ढियखग्गो तं हक्कए निवसुओ वि । “निक्किरिओ इयरो वि हु रूसइ किं खत्तिओ नेव ॥ ८३६८ ॥ दोन्नि वि वग्गणकरणक्कमन्भमणुब्भामियासिदुद्धरिसा । निप्पसरपहरपरा जुज्झंति समच्छरुक्करिसा || ८३६९ ॥ दंसेउं सिरघायं मोत्तुं पाएसु दिति मुनईओ ।। निवसिय उच्छलियावसरिडं च दोन्नि वि य वंचंति ॥ ८३७० ॥ नेगोवि जयं पावइ दोन्ह वि सत्थस्समप्पवीणत्ता । न समिज्जंति य जंते निच्चं चिय विजियसत्थसमा || ८३७१ ॥ अन्नोन्नखग्गसंघट्टभग्गधारंगखुडियअसिफलया । करकयतिक्खग्गखग्गधेणुणो ते पुणो भिडिया ॥ ८३७२ ॥
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