SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 598
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सिंगारमउडकहा पहु ! कहह मज्झ किं विंझवासिणी देवयाडई मज्झे । कयसन्नेज्झा जाया आयरपुव्वं कुमारस्स ॥ ७३०४ ॥ भणियं केवलिणा राय ! तं पि निसुणेसु सा तुह सुयस्स । आसी पुव्विल्लभवे जणणी अइवससिणेहपरा ।। ७३०५ ।। तो तीए नियाययणे समागयं पेच्छिऊण तुह तणयं । नाऊण विभंगेणइ सुओत्ति से दूरमुवयरियं ॥ ७३०६ || जा निय चवणंता देवयाए पयंपिरा य तुह कहियं । तं सोऊण सखयरो राया नयकेवली चलिओ || ७३०७ ॥ सिंगारमउडखेरपहुणो कारवइ पुरपवेसमहं । ठाणट्ठाणसमारद्धसुद्धपेच्छणयरमणीयं ॥ ७३०८ ॥ गंतुं पासाए खयरराइणा न्हाण - भोयणप्पमुहा । पडिवत्ती कारविया रन्ना सुयमिलणअनुद्धेण || ७३०९ ॥ भुत्तुत्तरम्मि उत्तमवत्थाभरणेहिं सुयमलंकरिउं । भणियं तं मह पुन्नेहिं संपयं पुत्त ! इह पत्तो ॥ ७३१० ॥ ता नियकुलक्क मागयरज्जसिरिं वच्छ ! इममलंकरसु । तुह साहेज्जेण जहा करेमि सपिओ वि पव्वज्जं ।। ७३११ ॥ विज्जाहरचक्कवई कयप्पणामो निबद्धकर - कोसो | विन्नवइ ताय ! तुब्भे अवहारह मज्झ विन्नत्तिं ॥ ७३१२ ॥ उप्पत्ती दुपुत्तस्स होइ असुहा य नूण जणयाण । जम्मसमए वि विहिओ संणिणाणत्थो न किरविणो ॥ ७३१३ ॥ कस्स वि य सुओ भवणं जसेण पूरइ करेइ पिउतोसं । भरइ जयं जोन्हाए चंदो उल्लासइ समुद्दं ॥ ७३१४ ॥ ता ता ! कुपुत्तो हं जेणासुहिणो मए कया तुब्भे । जेणेगं पि हु दिवसं नेव कया तुम्ह सुस्सूसा ॥ ७३१५ ॥ ता मह कयप्पसाया भुंजइ खयरस्सिरिं कइ वि वरिसे । सुस्सूसाए तुम्हें जह जससुकयाइं पावेमि ॥ ७३१६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only ५६९ www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy