________________
६६०
सिरिअणंतजिणचरियं
तुच्छतरविसयलालसमणस्स मह कित्तियं इमं दुक्खं । पररमणिरमणपावा नरए तमणंतसो होही ॥ ८४७७ ॥ न कयाइ कओ अनओ मए न अनईहिं सह पसंगो वि । एयं चिय गोत्तक्खयहेऊ पढमं कयमकज्जं ॥ ८४७८ ॥ अप्पविणासाय महापावुल्लासाय अयसपसराय । खलउक्करिसाय मए एयं दुव्विलसियं विहियं ॥ ८४७९ ॥ मरणं दारिदं वा विएसवासो व सयणविरहो वा । हुंतु वरं एयाई मा पुण एसो कुलकलंको ॥ ८४८० ॥ न कुणंति जे परिक्खियकज्जं ते दुक्खमंदिरं हुंति । पहु खिज्जति जणेणं मइलिज्जंति य अकित्तीए ॥ ८४८१ ॥ पंचिदियत्तमणुयत्त-आयरियखेत्तेसु सुकुलजम्माई । सव्वं पि मे निरत्थयमकज्जकरणुज्जमा जायं ॥ ८४८२ ॥ न कओ धम्मो न गुणा समज्जिया सज्जिया न सियकित्ती । चित्तालिहियनरस्स व मणुयत्तं मह मुहा जायं ॥ ८४८३ ॥ आबालकालओ बंभयारिणो जे कयव्वया जाया । ते पुन्नपयं न वयं विसएहिं विडंबियाए जे ॥ ८४८४ ॥ जइ देवगुरुपसाया एयव्वसणाओ कह वि छुट्टिस्सं । गिण्हिस्संता नियमेण सव्वविरइव्वयं सुहयं ॥ ८४८५ ॥ एवं महाणुभावो चिंतइ सद्धम्ममग्गमणुपत्तो । दूरं धणावली चिय पकंपए भडभयुब्भंता ॥ ८४८६ ॥ एत्तो य पवंचमई पहरिसउक्करसिया कहइ कुमई । इय फाडियं मए तं संधसु जइ संधिउं तरसि ! ॥ ८४८७ ॥ ईय भणिय गयाए तीए सेट्ठिणो कहइ तमागंतुं । तो सो सुयं तव्वसणो खणभया निच्चलो जाओ ॥ ८४८८ ॥ तियसो व्व निन्निमेसो निब्भरनिद्दो व्व नट्ठमणवित्ती । कयमोणो सज्झाणो व्व जायमुच्छो व्व निच्चेट्ठो || ८४८९ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org