SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 690
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भुवनपईवनिवकहा किं कायव्वविमूढं दठं तं जंपए पवंचमई । किं सेट्ठि गरिट्ठमई वि नट्ठबुद्धि व्व लक्खियसि ? || ८४९० ॥ किं कायरो व्व कंपसि रणरसियभडो व्व धीरिमं धरसु । केत्तियमित्तं कज्जं इमं कुसग्गीयबुद्धीण ॥ ८४९१ ॥ ६६१ जइ वि कुमईए कहिए विहिओ राएण भडदढावेढो । तुह तणओ मरणंतव्वसणं पत्तो जइ वि इण्हि || ८४९२ ।। तह वि हु तहा जइस्सं न जहा दव्वक्खओ ल्हसइ न जसो । न विणस्सइ तुह तणओ जणाणुराओ न जह जाइ ॥। ८४९३ ॥ नवरं निय बहुयं मह अप्पसु तं देवमंदिरे खिविउं । जह वंचिय समईए सुहडे कड्ढेमि तं असई ॥ ८४९४ ॥ गोसे वाहरियनिवो जइ जंपइ किं पि ता भणेज्ज तुमं । सपिओ वि मह सुओ पहु निसाए रुसिउं कहिं पि गओ ।। ८४९५ एवं ति भणिय बहुयं सिंगारिय से समप्पए सेट्ठी । निय सम्मयमहिलाओ मेलइ गंतुं सगेहे सा ॥। ८४९६ ॥ वज्जिरवद्धावणयच्छंदपणच्चंततरुणिपरियरिया । अयसंकलसंदाणियं कमकंतिमईए संजुत्ता ॥ ८४९७ ॥ सह मियमंजुस्सरतूरिएहिं गायंतकामिणीकलिया । चलिया मंद मंद पत्ता य कमेण देवउले || ८४९८ ॥ सवणासन्ने ठाउं कंतिमई जंपए पवंचमई । अंतो गंतुं तुमए असईवेसो नियसियव्वो ॥ ८४९९ ॥ ठायव्वं पइपासे होइ अणत्थो जहा न से गोसे । अप्पिय नियनेवच्छं मह पासे पेसियव्वा सा ।। ८५०० ॥ ईय जंपिऊण चलिया खलिया य भडेहिं इय भणंतेहिं । लब्भइ न इह पवेसो रायाएसो जओ एसो ॥। ८५०१ | एत्थ पविट्ठो चिट्ठइ रुद्धो असईजुओ नरो कोई । ता पुइज्जह गोसे देवयमिहि पुणो वलह ।। ८५०२ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy